
अधिकारी के जाते जाते विरोधी अधिकारी कर्मचारी सहित सब तारीफ ही करते है, भले ही वह तस्करों को, अवैध टैंक लगाने वालों को बचाता रहा हो ऐसा ही हुया आबकारी आयुक्त की सेवा मुक्ति के दिन हालांकि आयोजन में भी उपस्थित अधिकारी कर्मचारीओं में इनकी कथित कार्यशैली की चर्चाओं, किस्से कहानी सुनने सुनाने का आलम हास्यास्पद था क्योंकि जो व्यक्ति इनकी किस्से कहानियां सुनाकर छाए हुए थे वही जनाब माइक पकड़कर इनके कसीदे पढ़ने लगे थे।
खैर, MP में काबिल आबकारी कमिश्नर की तलाश शुरू हो चुकी है जो लांछन सह सके, बचे-खुचे अपने स्वार्थ को पूर्ण करता रहें बाकि सब नजर अंदाज करे, जो मुंह खोले उसे अपने खाके में सेट करने की कला जानता हो।
जमीर और काबिलियत होती तो कई दिन पहले ही रिटायरमेंट आदेश जारी नही होता, एक्सटेंसन मिल जाता, जिसके लिए कई प्रयासरत रहते है।
शासन को अरबों रुपयों के चूना लगाने वाले विभाग के नाकाबिल अफसरों को बचाने की कुब्बत रखता हो ?
अपने जमीर को मार कर, शासनहित में काम करने को प्रदर्शित कर सकता हो अन्यथा पिछले तीन वर्षो में, अब तक कितनी बकाया वसूली हुई, इसका हिसाब, आज रिटायर्ड हुए कमिश्नर राजीव चन्द्र दुबे से किसी ने पूछा ?आपके कार्यकाल में कितने बकाया वसूली की ?आबकारी पॉलिसी फेल क्यों हुई ? लायसेंसी भागे क्यों ?किसने भगाऐ ये कौन पूछेगा ? सरकार, पत्रकार या मंत्रालय ?
जवाब तो सरकार को देना है, इनको नही, पर सरकार चलाने का गुमान इनको रहता रहा है !