May 10, 2025

मप्र भाजपा के नए अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए काउंटडाउन जारी है। विगत दिनों देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बैठक के बाद राज्यों को संदेश भेज दिया गया था कि वे प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव जल्द से जल्द संपन्न कराएं।  इसके साथ ही मप्र में भी हलचल तेज हो गई थी।

पार्टी से जुड़े विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि मप्र में भाजपा अध्यक्ष के चयन के लिए आलाकमान ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को फ्री हैंड दे दिया गया है। अर्थात डॉ. मोहन यादव की ही पसंद के नेता की प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी होगी। मप्र भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का ऐलान जल्द हो सकता है। इस दिशा में शुक्रवार को सीएम डॉ. मोहन यादव का एकाएक दिल्ली दौरा बेहद अहम माना जा रहा है। खबर है कि इस दौरे में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से संगठन के प्रमुख मसलों पर विस्तार से चर्चा हुई। इसमें लंबित राजनीतिक नियुक्तियां और राष्ट्रीय संगठन में राज्यों के प्रतिनिधित्व जैसे महत्वपूर्ण विषय शामिल रहे। गौरतलब है कि इस मसले पर शाह से मुख्यमंत्री की लंबी चर्चा हो चुकी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दो बार प्रदेश के प्रवास पर आए। पहला प्रवास उनका 13 अप्रैल को भोपाल में और दूसरा 16 को नीमच में था। सूत्रों के मुताबिक इस दौरों पर शाह ने सीएम डॉ. यादव व अन्य नेताओं के साथ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को लेकर नब्ज टोटली। माना जा रहा है कि इस दिन दोनों के बीच लंबी चर्चा हुई और बहुत कुछ तय भी हो गया।  
बारम्बार टलता रहा
जनवरी महीने में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का ऐलान होना था, लेकिन अप्रैल भी आधा बीत चुका है और पार्टी फैसला नहीं कर पाई है। इसके पहले देरी की वजह जिलाध्यक्षों के चुनाव को बताया गया था, लेकिन अब वो प्रक्रिया भी पूरी हो चुकी है। माना जा रहा है अप्रैल अंत तक भाजपा को नया अध्यक्ष मिल जाएगा। प्रदेश में भाजपा अध्यक्ष का फैसला अब से पहले पोखरण विस्फोट की तरह होता रहा है। ये पहली बार है कि प्रदेश अध्यक्ष का निर्णय लेने मे पार्टी इतना समय ले रही है। हालांकि इस बार पार्टी में प्रदेश अध्यक्ष के पद के तलबगार नेताओं की कतार भी लंबी है। नरोत्तम मिश्रा से लेकर अरविंद भदौरिया तक तमाम पार्टी के कद्दावर मंत्रियों से लेकर मौजूदा डिप्टी सीएम राजेन्द्र शुक्ल का नाम भी प्रदेश अध्यक्ष के पद के लिए चर्चा में है। बाकी विधायक हेमंत खंडेलवाल का नाम इनमें सबसे मजबूत माना जा रहा है। जो निर्णय जनवरी में हो जाना चाहिए था वो अप्रैल तक नहीं हो सका है। हालांकि इसकी एक वजह ये भी है कि भाजपा में कोई भी निर्णय बहुत चिंतन मनन के बाद होता है। अभी प्रदेश में निकट भविष्य में चुनाव भी नहीं है, लेकिन पूरे बीस साल बाद सरकार का चेहरा बदला है। तो पार्टी सांमजस्य का भी ध्यान रखेगी और उसी आधार पर निर्णय लिया जाएगा। इस देर की एक वजह ये भी हो सकती है।
सभी निर्णय निहित प्रक्रिया से होते हैं
हालांकि भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष के फैसले को लेकर हो रही देरी पर भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल का कहना है कि भाजपा मे हर निर्णय पूरी प्रक्रिया से होता है। पार्टी से संबधित किसी भी निर्णय की घोषणा प्रक्रिया पूर्ण हो जाने के बाद ही होगी। इस संबंध में राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष फीडबैक ले रहे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने गत दिवस राजस्थान के सीएम भजनलाल शर्मा और त्रिपुरा के सीएम डॉ. माणिक साहा भाजपा मुख्यालय पर संगठन महामंत्री बीएल संतोष के साथ लंबी मंत्रणा चली। बीएल संतोष ने सभी से 40-40 मिनट अलग-अलग बात की। संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर भीं मंथन किया जा रहा है।
समन्वय बनाने वाले को रहेगी प्राथमिकता
मप्र भाजपा में करीब 18 साल बाद सत्ता का चेहरा बदला है। शिवराज सिंह चौहान की जगह डॉ. मोहन यादव को कमान सौंपी गई है। माना जा रहा है कि अब संगठन में होने जा रहे बदलाव में भी मोहन की मर्जी को प्रमुखता दी जाएगी। भाजपा के हर दौर में संगठन और सरकार का समन्वय सबसे बड़ी चुनौती रहा है। लिहाजा पार्टी चाहती है कि दो साल बाद होने वाले नगरीय निकाय के चुनाव और करीब 4 साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव तक पार्टी संगठन और सरकार में समन्वय के साथ मजबूत बनी रहे। लिहाजा पार्टी प्रदेश अध्यक्ष का नाम फाइनल करने के पहले इस पर विचार करेगी कि सीएम डॉ. मोहन यादव से प्रदेश प्रमुख का समन्वय बना रहे। मप्र में जैसे-जैसे अध्यक्ष के नाम की घोषणा में देरी हो रही है, वैसे-वैसे नए नाम सामने आते जा रहे हैं। अभी तक सबसे मबजूत नाम इस दौड़ में नरोत्तम मिश्रा और हेमंत खंडेलवाल का माना जा रहा है। बैतूल से विधायक हेमंत खंडेलवाल इस दौड़ में सबसे आगे हैं। लो प्रोफाइल नेताओं में उनकी गिनती होती है। इनके बाद सुमेर सिंह सोलंकी के साथ दुर्गादास उइके और अगर पार्टी आदिवासी चेहरे पर दांव लगाती है, तो फग्गन सिंह कुलस्ते का नाम भी हो सकता है। पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा का पुर्नवास पार्टी में लंबे समय से लंबित भी है। उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान न्यू ज्वाइनिंग टोली के मुखिया के तौर पर अपनी परफॉर्मेंस भी दी है। वहीं आरएसएस की पृष्ठभूमि से आने वाले अरविंद सिंह भदौरिया को संगठन का लंबा अनुभव है। संघ की जमीन उनकी दावेदारी को मजबूत बनाती है।

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