
सिटी टुडे। ग्वालियर जिले में लाखों परिवारों के प्रत्येक बच्चे की स्कूली किताबों का खर्च इस वर्ष 700 से 1000 रु तक घटा है उदाहरण के लिए यदि एक परिवार में तीन स्कूली बच्चे है और पिछले वर्ष प्रति बच्चे की किताबें औसतन 4 हजार 500 की खरीदी गई थी तो इस वर्ष प्रति बच्चे स्कूली किताबों में लगभग एक हजार रु कम में पुस्तक मेले से अभिभावकों ने खरीदी है यह संभव हुआ ग्वालियर कलेक्टर श्रीमती रुचिका चौहान जी की जनहितकारी सोच के फलस्वरूप प्राइवेट स्कूल और उनसे जुड़े प्राइवेट पब्लिशर्स और उनके एजेंट्स पर नकेल कसे जाने के कारण। कलेक्टर महोदया ने जनहित में पुस्तक मेले का आयोजन किया जिसमें इन्हीं माफियाओं ने मोनोपली के तहत दुकानें लगाई अजब गजब तो ये भी था कि एक ही फर्म के नाम से एक नहीं, दो नहीं,तीन तीन, चार चार दुकानें आवंटित की गई, हैन सेटिंग और ऐसी ही सेटिंस के ही अनुसार स्कूलो की किताबें रखी लेकिन खेल देखिए कि स्कूलों ने NCERT और CBSE की किताबों के अतिरिक्त प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें भी अभिभावकों से खरीदवाई जिन्हें इन धंधेबाजों ने प्रिंट रेट पर ही बेचा अथवा मामूली छूट देकर अभिभावकों को लूटा उदाहरण के लिए ग्लोरी स्कूल की कक्षा 10 को हिंदी व्याकरण प्रवाह की प्राइवेट पब्लिशर्स की किताब जिसका मूल्य 460 रु किताब पर अंकित है उस किताब को न्यू भारती बुक डिपो द्वारा 415 रु में बेचा जिसका कच्चा बिल इनके द्वारा अभिभावकों को दिया जाता रहा व सादा कागज पर ही हिसाब जोड़कर लेनदेन किया जाता रहा। जो किसी जिम्मेदार अधिकारी कर्मचारी ने देखा नहीं या जानबूझकर चुप रहे।

एक सवाल स्कूल प्रबंधन से ये है कि आखिर ऐसी क्या व्याकरण इस प्राइवेट पब्लिशर्स की किताब में है जो NCERT या CBSE की किताब में नहीं होती, दूसरा सवाल मेले में जिम्मेदार जिला शिक्षा अधिकारी से ये है कि आखिर प्रतिदिन रजिस्टर भर भर कर अभिभावकों द्वारा फीडबैक स्टॉल पर लिखी जा रही शिकायतों पर आपने स्वयं कोई कार्रवाई क्यों नहीं की जिससे मेले में धांधली जारी है जो आंखों के अंधों को भी दिख रही है फिर आपको, आपके हुसैन साहब और उनके अधीन पुस्तक मेले में सेवारत स्टाफ को क्यों नहीं दिख रही?

एक गंभीर शिकायत सिटी टुडे की जानकारी में यह भी आई की दून स्कूल प्रबंधन ने तो अभिभावकों को रिजल्ट प्रोवाइड करते हुए बुक्स की लिस्ट प्रदान की जिसमें उनके द्वारा कमीशन के लेनदेन के कारण सेटिंगबाज दुकान संचालकों से खरीदने के लिए पूरा पता संचालक का नाम मोबाईल नंबर तक छाप कर पर्चे में दिया गया जिसकी शिकायत भी फीडबैक स्टॉल पर लिखित आवेदन के रूप में बृजपाल सिंह ने की इस पर कोई ठोस कार्रवाई आपके द्वारा अभी तक क्यों नहीं की?

एक वृहद शिकायत देखने को मिली कि माननीय कलेक्टर महोदया के द्वारा इस मेले का आयोजन करवाए जाने के मंतव्य के विपरीत वेंडर द्वारा मेले में यूनिफार्म की बिक्री न की जाकर मेले के बाद दुकान से खरीदने के लिए अभिभावकों पर जोर दिया जा रहा था जिसमें क्या आपके स्टाफ ने इस विषय में संज्ञान लिया अगर लिया तो क्यों कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई?
Amity स्कूल प्रबंधन द्वारा अपने सेटिंगबाज दुकानदार के माध्यम से स्कूल के नाम की प्रिंटेड नोटबुक्स अभिभावकों को खरीदवाई जा रही थी ब्रांडेड नोटबुक्स के रेट्स पर आपके स्टाफ की आँखें बंद क्यों थीं?
मैडम कलेक्टर महोदया के अत्यंत सराहनीय और प्रशंसनीय जनहितकारी कार्य की सराहना जहां जिले का प्रत्येक परिवार कर रहा है वहीं जिला शिक्षा अधिकारी और उनके स्टाफ इस आयोजन की मूल भावना के रखवाले न बनकर महज रस्म अदायगी करते देखे गए जिसके कारण यह आयोजन कुछ हद तक सफल होते हुए भी असफल रहा है क्योंकि सिंडिकेट का वर्चस्व बरकरार रहा है अब इसे प्रशासन की लापरवाही कहे या जिम्मेदार अधिकारी कर्मचारी जनों की मिलीभगत।
उल्लेखनीय है कि जबलपुर जिला प्रशासन द्वारा भी जनहित में पुस्तक मेले का आयोज करवाया जाता है जहां अभिभावकों को 50 प्रतिशत तक की छूट दी जाती है और NCERT तथा CBSE की ही पुस्तके स्कूल में अनिवार्य है फिर आखिर ग्वालियर में सिंडिकेट वाले 10 प्रतिशत छूट में ही क्यों बौखला गए? और ग्वालियर के प्राईवेट स्कूलों में दिल्ली, हरियाणा पंजाब के प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें से पढ़ाया जाना क्यों आवश्यक है, सिटी टुडे को प्राप्त जानकारी अनुसार ये प्राइवेट पब्लिशर्स अपने अपने सेल्स एक्जीक्यूटिव टीम को फ्लाईट से भेजकर महंगे होटल्स में रुकने को सुविधा देकर उनके माध्यम से स्कूलों को मोटा कमीशन और स्कूलों से जुड़े मैनेजमेंट के जिम्मेदार अधिकारियों कर्मचारियों को महंगे गिफ्ट्स देकर हर हाल में कन्वेंस करने की होड मची रहती है यही नहीं स्थानीय डीलर्स को मोटा मुनाफा और टारगेट अचीव करने पर फैमिली को फ्री विदेश यात्रा तक करवाई जाती है अब आप समझ सकते है कि सरकारी संस्थाओं की किताबों की बजाय आपसे निजी प्रकाशकों की महंगी महंगी किताबें क्यों खरीदवाई जाती है।
अब देखने वाली बात ये होगी क्या मेले के बाद यूनिफार्म की बिकवाली में किस कदर लूट का सिलसिला शुरू होगा क्योंकि स्कूलो ने सैंपल दे दिए है पर्चे बांट दिए है अब मेले के खत्म होने का इंतजार सिंडीकेट वाले कर रहे हैं।