July 14, 2025
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सिटी टुडे। MP के रायसेन किले स्थित प्राचीन मंदिर में भगवान शिव वर्षों (Lord Shiva imprisoned in mysterious fort) से कैद हैं। कथावाचक प्रदीप मिश्रा ने इसको लेकर सवाल उठाए तो एमपी में सियासी तूफान आ गया है। नई पीढ़ी को मंदिर के इतिहास (mysterious raisen fort history) के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, ऐसे में लोग जानना चाहते हैं कि आखिर भगवान शिव के मंदिर में ताला क्यों लगा है। यह ताला सिर्फ महाशिवरात्रि के दिन 12 घंटे के लिए खुलता है। 11वीं शताब्दी के आस-पास बने इस किले पर कुल 14 बार विभिन्न राजाओं, शासकों ने हमले किए। तोपों और गोलों की मार झेलने के बाद भी आज तक यह किला सीना तानकर खड़ा है। रायसेन का किला 1500 फीट ऊंची पहाड़ी पर दस वर्ग किमी में फैला है। इतिहासकारों के अनुसार रायसेन किला का निर्माण एक हजार ईसा पूर्व किया गया है।

इस किले के परिसर में ही एक मंदिर है, जो साल में केवल शिवरात्रि के दिन खुलता है। बाकी 364 दिन यह ताले में बंद रहता है। सोमेश्वर धाम मंदिर के प्रति आसपास के श्रद्धालुओं की आस्था है। यह मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है। 1974 में नगर के लोगों ने एकजुट होकर मंदिर खोलने की मांग की थी। साथ ही यहां स्थित शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा के लिए आंदोलन किया था। उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी ने महाशिवरात्रि पर खुद आकर शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा कराई थी। तब से हर महाशिवरात्रि पर मंदिर का ताला श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है। इसके साथ ही विशाल मेला भी लगता है।

इस किले को लेकर कई किंवदंतियां हैं। इसकी चाहर दीवारी में हर साधन और भवन के कई हिस्से मौजूद हैं। इसके साथ ही यहां कुछ खास चीजें भी हैं, जो इसे अन्य किलों से अलग करती हैं। इन्हीं में से उस जमाने का वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम और इत्र दान महल का ईको साउंड सिस्टम है। यह सिस्टम देश के अन्य किलों में नहीं दिखती हैं। करीब दस वर्ग किमी में फैले इस किले की पहाड़ी पर गिरने वाला बारिश का पानी भूमिगत नालियों के जरिए किला परिसर में बने एक कुंड में जमा होता है। जानकारों का कहना है कि सदियों पुराने इस वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से तत्कालीन शासकों की दूर दृष्टि और ज्ञान का अंदाजा लगाया जा सकता है।

यहां बने इत्रदान महल के भीतर दीवारों पर बना ईको साउंड सिस्टम भी अनोखा है। एक दीवार के आले में मुंह डालकर फुसफुसाने से विपरीत दिशा की दीवार के आले में यह आवाज स्पष्ट सुनाई देती है। जबकि दोनों दीवारों के बीच 20 फीट की दूरी है। यह कैसे होता है, मतलब ये सिस्टम कैसे काम करता है, ये आज भी रिसर्च का विषय है। यहां यह भी खास है कि इस किले में पारस पत्थर होने सहित उसकी रक्षा करने को लेकर भी कई प्रकार की बातें कहीं जाती हैं।

नौ दरवाजे और 13 बुर्ज
किला बलुआ पत्थर की चट्टान पर ऊंचाई पर खड़ा है। किले के चारों तरफ बड़ी-बड़ी चट्टानों की दीवारें हैं। इन दीवारों के नौ गेट और 13 बुर्ज हैं। किले की दीवारों में शिलालेख भी हैं।

किले से जुड़ी अहम घटनाएं
17 जनवरी 1532 ई. को बहादुर शाह ने रायसेन किले का घेराव किया।
6 मई 1532 ई. को रायसेन की रानी दुर्गावती ने 700 राजपूतानियों के साथ जौहर किया।

10 मई 1532 ई. को महाराज सिलहादी, लक्ष्मणसेन सहित राजपूत सेना का बलिदान।
जून 1543 ई. में रानी रत्नावली समेत कई राजपूत महिलाओं एवं बच्चों का बलिदान।
जून 1543 ई. में शेरशाह सूरी के विश्वासघाती हमले में राजा पूरणमल और सैनिकों का बलिदान।

सिक्कों को गलाकर बनाई थी तोपें
इस किले को जीतने के लिए 15वीं सदी में शेरशाह सूरी ने सिक्कों को गलवा कर तोपें बनवाई थीं। मालवा की पूर्वी सीमा पर स्थित इस किले को जीतने के लिए शेरशाह ने धोखे का सहारा लिया था। कहा जाता है कि तब राजा पूरनमल का राज इस किले पर था।

राजा पूरणमल ने क्यों काटा रानी का सिर
इतिहासों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि दिल्ली का शासक शेरशाह सूरी चार माह की घेराबंदी के बाद भी इस किले को नहीं जीत पाया था। इसके बाद उसने तांबे के सिक्कों को गलवा कर यहीं तोपों का निर्माण किया, तब कहीं जाकर शेरशाह को जीत नसीब हुई। शेरशाह ने इस किले को घेरा तब 1543 ईसवीं में यहां राजा पूरणमल का शासन था। वह शेरशाह के धोखे का शिकार हुए थे। राजा पूरणमल मालूम पड़ा कि वह धोखे का शिकार हो गए हैं, तो अपनी पत्नी रत्नावली का स्वयं सिर काट दिया था, जिससे वह शत्रुओं के हाथ न लगे।

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