सिटी टुडे। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव आज से ठीक 4 महीने 15 दिन बाद होंगे। संगठन की एक गोपनीय रिपोर्ट अनुसार ही प्रदेश में सरकार से कम संगठन नेतृत्व के प्रति अधिक असंतोष व्याप्त है जो अब धीरे धीरे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नियंत्रण से बाहर होता दिख रहा है।
शह और मात की राजनीति में माहिर सरकार के मुखिया के प्रति भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व भी नरम है क्योंकि चुनाव के मुहाने पर है सरकार के मुखिया को इस समय हटाया जाना उचित नहीं होगा परंतु संगठन के मुखिया को हटाए जाने के मामले में अभी तक राष्ट्रीय नेतृत्व फैसला नहीं ले पा रहा हालांकि यह तय माना जा रहा है कि अब आगामी प्रदेश अध्यक्ष पिछड़ा वर्ग से नहीं होगा क्योंकि मुख्यमंत्री स्वयं पिछड़ा वर्ग से हैं ऐसे में जातीय समीकरण बिगड़ेंगे। कैलाश विजयवर्गीय के नाम पर भी नेतृत्व एकमत नहीं हो पा रहा है वही टीम शिवराज एक तीर से दो निशाने करने की योजना के तहत बीडी शर्मा को अगर हटाया जाता है तो गोपाल भार्गव, राजेंद्र शुक्ला का नाम आगे किया जा रहा है परंतु संघ किसी आदिवासी चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने पर सहमत हैं अगर ऐसा हुआ तो राज्यसभा सदस्य सुमेर सिंह सोलंकी को मौका मिल सकता है।
प्रदेश में सत्ता और संगठन से भारतीय जनता पार्टी का धरातल स्तरीय कार्यकर्ता की नाराजगी भी विधानसभा चुनाव में काफी असर दिखाएगी. सूत्रों अनुसार प्रदेश में सत्ता और संगठन का बेहतर तालमेल न होने के साथ ही गुटबाजी के कारण अधिकतर जिला इकाइयों की कार्यकारिणी की घोषणा भी न होने के साथ अभी तक निगम मंडलों प्राधिकरण में नियुक्तियां नहीं की गई हैं। साथ ही नगर परिषद, नगर पालिकाओ तथा नगर निगमों में वरिष्ठ पार्षदों की नियुक्तियां भी न होने से जमीनी कार्यकर्ताओं में आक्रोश है इस आक्रोश की ज्वाला विधानसभा चुनावों में असर डालकर कांग्रेस की कठिन राह को कुछ हद तक आसान कर सकती है। ऐसा भी नहीं है कि राष्ट्रीय नेतृत्व को इन सब घटनाओं की जानकारी न हो परंतु प्रदेश भाजपा के अंदर चरम सीमा पर फैली गुटबाजी के कारण राष्ट्रीय नेतृत्व भी निर्णय लेने में देर कर रहा है संगठन से जुड़े कई राजनीतिक समीक्षकों भी इस बात को स्वीकार किया है कि इन सब बातों का असर विधानसभा चुनाव में अवश्य पड़ेगा ही।