
“22 अप्रैल 2025 — यह तारीख…
जश्न की होनी थी, पर किस्मत कुछ और थी,
1.डॉ. विजय देशमुख, लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज के एक संवेदनशील डॉक्टर, जिन्होंने आरामदायक मेडिकल प्रैक्टिस छोड़कर सिविल सेवा की कठिन राह चुनी थी। पिछले तीन वर्षों से वे दिल्ली में इस परीक्षा की तैयारी में लगे थे।
2.संजय आहलूवालिया, IIT दिल्ली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक, जो मुझफ्फरनगर की गलियों से निकलकर सिविल सेवा के सपने देखे थे। वे भी तीन वर्षों से मुखर्जी नगर में रहकर तैयारी कर रहे थे।
3.बरखा सिंह :, लेडी श्रीराम कॉलेज की पूर्व छात्रा — जिनके चेहरे व आंखों में दृढ़ निश्चय की मंज़िल थी । छह वर्षों से उनकी IAS की तैयारी चल रही थी।
चौथी थीं चंदना मुखर्जी , प्रेसिडेंसी कॉलेज, कोलकाता की गहरी सोच वाली, संतुलित, शांत लड़की, वे भी तीन वर्षों से दिल्ली तैयारी में थीं। इन चारों ने वाजिराम IAS अकादमी की कक्षाओं में, संघर्षों और सपनों के बीच , कठोर एकेडमिक परिश्रम किया । दोस्ती में उन्होंने एक-दूसरे का हर टेस्ट, हर मॉक इंटरव्यू, हर आत्म-संशय के क्षण में साथ-साथ परीक्षाए दी ।
15–17 अप्रैल 2025 —
UPSC पर्सनैलिटी टेस्ट के दिन। नर्वस मुस्कानें , फ़ॉर्मल कपड़े, धड़कते दिल। एक-एक करके वे धौलपुर हाउस की भव्य इमारत में घुसे। और एक-एक करके इंटरव्यू से बाहर आए —बड़ी उम्मीदों के साथ।
सालो के तनाव से मुक्ति पाने हेतु
, उन्होंने अपने लंबे समय से तय किए गए प्लान को हकीकत बनाया —
“एक यात्रा कश्मीर की ओर,।”
18 अप्रैल 2025 — चारों दोस्त श्रीनगर पहुँचे।
हवा में वसंत की खुशबू थी। डल झील पर सुबह की किरणें झिलमिला रही थीं। शिकारे में बैठे, कहवा पीते हुए वे मुग़ल गार्डन की गलियों में खो गए। गुलमर्ग में वे बर्फ़ में बच्चों की तरह हँसे। गोंडोला की सवारी पर उन्हें लगा मानो वे दुनिया के सबसे ऊँचे मुकाम पर हों —
अनजान उस तूफान से जो घाटी के पार इंतज़ार कर रहा था।
22 अप्रैल, वे पहुँचे पहलगाम।
यह वही दिन था जब उन्हें अपनी आज़ादी और सपनों का जश्न मनाना था — उसी दिन Civil Services का परिणाम आने वाले थे। उन्होंने घाटियों में घूमते हुए, लिद्दर नदी के किनारे नाचते हुए, ढेरों तस्वीरें खींचीं। लेकिन दोपहर 2:15 बजे, सब कुछ बदल गया।
गोलीयों की आवाज़ ने शांत वादियों की हवा को चीर दिया। पहलगाम बाज़ार क्षेत्र के पास एक आतंकवादी हमला हुआ — जन्नत जैसे स्थान को नर्क बना दिया ।
लोग चीखने लगे। खून बहा। हर ओर अफरा-तफरी मच गई। “आतंकवादी नाम और धर्म पूछकर गोलियाँ बरसा रहे थे।”
घबरा कर, चारों दोस्त जान बचाने को दौड़ पड़े। एक मारुति वैन मिली, उसे ₹10,000 देकर, उन्होंने ड्राइवर से विनती की — “हमें कहीं भी ले चलो, बस यहाँ से दूर।” वहीं का वैन ड्राइवर था , घाटियों को पार करते हुए उन्हें पाकिस्तान सीमा के बेहद क़रीब ,अनंतनाग के पास छोड़ गया ।
और फिर वो हुआ ,
जिसने सबको स्तब्ध कर दिया।
शाम 4:50 बजे, पाकिस्तानी सैनिकों ने उन्हें घुसपैठिया समझकर पकड़ लिया और बंदी बना लिया। उसी दिन, दोपहर 3:03 बजे, UPSC 2025 के परिणाम घोषित हुए।
विजय : रैंक 67
संजय : रैंक 71
बरखा : रैंक 61
चंदना : रैंक 73भारत भर में स्क्रीनें इन नामों से जगमगा उठीं — पर वे चारों अनंतनाग की एक जेल में, इनसे अनजान, बंद पड़े थे।
दिल्ली में, परिवारों ने परिणाम देखे। फ़ोन पर फ़ोन किये , पता चला > बच्चे फोन पर नहीं मिल रहे। खोजबीन हुई, रिपोर्टें दर्ज़ हुईं, कुछ दिन बाद , गृह मंत्रालय में गुहार लगाई गई:
“हमारे बच्चे लापता हैं। वे सिविल सेवा पास कर चुके हैं। कृपया उन्हें खोजिए।” अब आइए मोदी के नए भारत की ओर :
जबाब में भारत आतंकवाद विरोधी अभियान में लग गया था ।
भारतीय DGMO ने गुप्त मिशनों की शुरुआत की। स्लीपर सेल्स खत्म किए गए। इंटेलिजेंस चौकन्ना हुआ।
पाकिस्तान से तनाव बढ़ा। सीमा पर आग की लपटें दिखने लगीं। LoC पार हवाई हमले किए गए।
10 मई 2025, शाम 5:00 बजे IST
— पाकिस्तानी DGMO ने सीज़फायर का अनुरोध किया। बातचीत के दौरान, नए भारत के सेना प्रमुख ने
चारों लापता युवाओं का मुद्दा उठाया।लंबी खोजबीन और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद,
13 मई को पुष्टि हुई:
वे चारों जीवित थे — पाकिस्तान की अनंतनाग पोस्ट के पास की एक जेल में।
16 मई 2025 — एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने उनसे भेंट की। “उन्हें दिया गया “द हिन्दू” अखबार — 22 अप्रैल 2025 की प्रति।”
मुखपृष्ठ पर उनके नाम और रैंक छपे थे।एक जेल की कोठरी में,
उन्होंने अपने जीवन की सबसे बड़ी जीत का जश्न मनाया। नए भारत का कमाल देखिये :
तुरंत सभी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी कर अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते, पाकिस्तानी सरकार को उनकी रिहाई की अनुमति देनी पड़ी ।
18 मई 2025 :
वे चारो सितारे वाघा बॉर्डर पार कर ,भारतीय सेना की सुरक्षा में आ गए ।वे कलेक्टर बनेंगे — सिर्फ डिग्रियों और रैंक के साथ नहीं, बल्कि
एक कहानी के साथ — संघर्ष, देशभक्ति, सरकार और तक़दीर की ।इस घटना से एक इतिहास भी बना है ।
ये वही भारत है जो 92, 000 पाक कैदियों को छोड़ने के बदले कभी अपने सैनिकों को कभी वापस नही ला पाया ।
ये वही भारत है जिसे प्लेन हाइजेक को छुड़ाने के बदले आतंकियों को छोड़ना पड़ता था ।
ये वही भारत है , जिसकी हाथ बंधी सेना आतंकियों के पत्थर खाती थी । आज यही भारत , मोदी युग मे ,
सिर्फ आँख दिखाकर …..
अपने देश वासियों की रक्षा करता है ।