July 11, 2025
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मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार से जुड़ी सबसे बड़ी खबर लेकिन उसको स्थान बहुत छोटा मिला। सुप्रीम कोर्ट से रिटायर्ड अफसर एसआर मोहंती को बड़ा झटका लगा है। मोहंती द्वारा उद्योग निगम में किए गए ₹700 करोड़ से अधिक के लोन घोटाले की जांच की जाएगी। जांच को रोकने के लिए मोहंती सर्वोच्च न्यायालय गए थे लेकिन न्यायालय द्वारा उनकी याचिका खारिज कर दी गई है।

उच्च न्यायालय द्वारा इसके पहले भी उनकी याचिका को नामंजूर किया गया था। 20 साल पहले हुए घोटाले के लिए जिम्मेदार मोहंती के खिलाफ अब विभागीय जांच का रास्ता साफ हो गया है, साथ ही EOW द्वारा फिर से इस प्रकरण को शुरू करने का मौका मिल गया है, जिसे कमलनाथ की सरकार द्वारा वापस लेकर मोहंती को मुख्य सचिव बनाया गया था।

ब्यूरोक्रेसी और राजनीति की हकीकत बयां करती मोहंती की मुख्य सचिव बनने तक की कहानी बहुत दिलचस्प है। 20 साल पहले घोटाले की जांच शुरू हुई थी लेकिन आज तक पूरी नहीं हो पाई और आरोपी अफसर सशर्त पदोन्नति पाते हुए मुख्य सचिव की कुर्सी तक पहुंच गए। अब सवाल यह है कि 20 साल पुराने मामले की जांच होगी और उसमें घोटालों को प्रमाणित पाया जाता है तो फिर घोटाले के आरोपी अफसर द्वारा मुख्य सचिव की कुर्सी तक जो फैसले या योजनाएं क्रियान्वित की गई हैं क्या उनमें भी भ्रष्टाचार की संभावनाओं की खोजबीन जनहित में नहीं होगी?

भारत का कानून कहता है कि आरोपी को संरक्षण देने वाला भी आरोपी का सहयोगी और भागीदार माना जाता है। कमलनाथ के नेतृत्व में मोहंती के भ्रष्टाचार के केस को वापस लेकर उन्हें मुख्य सचिव बनाया गया तो आज एक प्रकार से केस वापस लेने का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के प्रकाश में गलत सिद्ध हो गया है। भ्रष्टाचार में शामिल व्यक्ति को प्रशासन की सर्वोच्च कुर्सी सौंप कर राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के इस मामले में उस समय के मुख्यमंत्री के विरुद्ध भी कार्यवाही क्यों नहीं की जानी चाहिए?

उद्योग लोन घोटाला ऐसा था जिसमें उद्योगपतियों के साथ मिलकर उद्योग विकास निगम के तत्कालीन एमडी के रूप में मोहंती ने 719 करोड़ रुपए के लोन अपात्र लोगों को वितरित कर दिए थे। कुछ लोन वापस जमा हुआ कुछ नहीं जमा हुआ। जनता का पैसा खुर्द-बुर्द हुआ। राजनेताओं ने मोहंती पर कृपा बरसाते हुए जांच आगे बढ़ाने का काम तो नहीं किया लेकिन उन्हें सशर्त पदोन्नति देने का काम लगातार होता रहा।

कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनते ही जैसे मोहंती की किस्मत खुल गई। जैसा अफसर उन्हें चाहिए था वह मोहंती के रूप में उन्हें मिल गया। मुख्य सचिव की कुर्सी की सौदेबाजी हुई उनका भ्रष्टाचार का केस वापस किया गया और उन्हें मुख्य सचिव की कुर्सी पर बैठा दिया गया। 15 महीने बाद कमलनाथ की सरकार गिर गई तब शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने मोहंती के खिलाफ जांच की प्रक्रिया को फिर से शुरू करने के आदेश जारी किए। इसी आदेश के खिलाफ मोहंती की याचिका उच्च न्यायालय में खारिज हो गई फिर वे सुप्रीम कोर्ट गए और पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका निरस्त कर दी गई।

अब उनके सामने जांच का सामना करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। विभागीय जांच के लिए जांच अधिकारी की नियुक्ति होगी। आर्थिक अपराध ब्यूरो (EOW) द्वारा भी फिर से केस शुरू किया जा सकता है, जब विभागीय जांच हो सकती है तो गलत ढंग से वापस लिए गए भ्रष्टाचार के मामले को फिर से चालू क्यों नहीं किया जा सकता? राज्य सरकार को इस दिशा में तत्काल पहल करनी चाहिए। EOW में केस शुरू किया जाना चाहिए।

इस पूरे मामले में एक पक्ष तो भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारी का है और दूसरा पक्ष उन्हें मुख्य सचिव की कुर्सी पर पदस्थ करने वाले मुख्यमंत्री का है और तीसरा पक्ष फिर से जांच शुरू करने वाली वर्तमान सरकार से जुड़ा हुआ है। वर्तमान सरकार को भ्रष्टाचार के इस गंभीर मामले में कोई कोताही नहीं बरतना चाहिए। जनता के सामने सच लाया जाना चाहिए। इस मामले में न केवल संबंधित अधिकारी के खिलाफ बल्कि तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की पहल की जाना चाहिए। जिनके द्वारा लिए गए गलत निर्णय से मध्यप्रदेश की ब्यूरोक्रेसी और शासन व्यवस्था की तौहीन हुई है।

आज देश में भ्रष्टाचार बड़े मुद्दे के रूप में जनता को परेशान कर रहा है। ब्यूरोक्रेसी और राजनीति की मिलीभगत से इस तरह के भ्रष्टाचार को दबाने का नजरिया उजागर हो रहा है। मध्यप्रदेश में ब्यूरोक्रेसी के स्तर पर करप्शन के मामले लगातार बढ़ते हुए दिखाई पड़ रहे हैं।

कमलनाथ सरकार के दौरान ही आयकर विभाग के छापों के बाद चुनाव आयोग द्वारा कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ EOW जांच की प्रक्रिया प्रारंभ की गई। इस प्रकरण की वर्तमान स्थिति के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन प्रदेश की नौकरशाही को कलंकित करने वाला यह मामला लोगों के जेहन में बना हुआ है।

पोषण आहार घोटाले पर आम चर्चा हो रही है, सीएजी ने पोषण आहार में अनियमितताओं और गड़बड़ियों का आरोप लगाया है, भ्रष्टाचार के मामले उजागर होते हैं, जांच की प्रक्रिया प्रारंभ होती है फिर धीरे धीरे जांच पर धूल चढ़ने लगती है, इस अवधि में अगर कोई अपना राजनीतिक आका सत्ता में आ गया तो फिर सारी जांच खत्म हो जाती है। मनचाहा पद भी हासिल हो जाता है।

क्या भ्रष्टाचार राजनीतिक क्षेत्र की जरूरत बन चुका है? राजनीतिक प्रक्रिया में लगने वाले धन का इंतजाम क्या भ्रष्टाचार से ही हो सकेगा? क्या इस पर किसी प्रकार की सुधार की कोई गुंजाइश नहीं हो सकती है? क्या राजनीति में घोटालेबाज़ आबाद ही रहेंगे या ऐसी शक्तियों को जनता बर्बाद करेगी? जनता क्या राजनेताओं के लिए दास की ही भूमिका में रहेगी? क्या निर्माण से ज्यादा बर्बादी का मंजर ही जनता को भुगतना पड़ेगा? राजनीति में स्वार्थपूर्ति की जबर्दस्त प्यास क्या कभी कम होगी? मध्यप्रदेश के करोड़ों रुपए के उद्योग घोटाले में क्या कोई दोषी सिद्ध होगा या फिर कोई नाथ बनकर भ्रष्टाचार को सनाथ और ईमानदारी को अनाथ ही करता रहेगा?

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