December 23, 2024
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हाइलाइट्स

  • जस्टिस (रिटायर्ड) जी रोहिणी आयोग को एक और कार्यकाल विस्तार दिया गया है
  • आयोग पर ओबीसी जातियों के अंदर उप-जातियों की पहचान करने की जिम्मेदारी है
  • आयोग बताएगा कि किन-किन उपजातियों को ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं मिल सका
  • सिटी टुडे, दिल्ली। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के भीतर उप-वर्गीकरण से जुड़े मुद्दों पर गौर करने के लिए गठित जस्टिस रोहिणी आयोग का कार्यकाल फिर से छह महीने बढ़ गया है। इस विस्तार के साथ आयोग का रिपोर्ट पेश करने के लिए 13वीं बार कार्यकाल बढ़ाया गया है। अब इसका कार्यकाल 31 जनवरी 2023 तक हो गया है। आयोग को यह विस्तार ऐसे समय में दिया गया है जब एक महीने पहले ही सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय में सचिव आर सुब्रमण्यम ने संवाददाताओं को बताया था कि आयोग ने और विस्तार नहीं मांगा है और वह जुलाई के अंत तक अपनी रिपोर्ट पेश करेगा जब उनका वर्तमान कार्यकाल समाप्त होगा ।

  • 2017 में हुआ गठन, 13वीं बार मिला कार्यकाल विस्तार

    ओबीसी आरक्षण को लेकर तेज होती सियासत के बीच रोहिणी आयोग की सिफारिशें गौर करने वाली हैं। केंद्र सरकार ने संविधान के अुच्छेद 340 के तहत ओबीसी समुदाय से आने वाली जस्टिस जी. रोहिणी की अगुवाई में चार सदस्यीय आयोग का गठन 2 अक्टूबर, 2017 को किया था। आयोग ने 11 अक्टूबर, 2017 को कार्यभार संभाला। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने एक सवाल के जवाब में 13 मार्च, 2018 को लोकसभा को बताया था, ‘दिल्ली हाई कोर्ट की पूर्व चीफ जस्टिस जी. रोहिणी की अध्यक्षता में सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज, नई दिल्ली के डायरेक्टर डॉ. जेके बजाज, एंथ्रोपॉलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, कोलकाता के डायरेक्टर और देश के रजिस्ट्रार जनरल और सेंसस कमिश्नर की सदस्यता वाले आयोग का गठन किया गया है।’

    क्यों पड़ी थी एक और आयोग की जरूरत

    मंत्रालय ने कहा कि आयोग ओबीसी की उप-श्रेणियों का निर्धारण करेगा। उसने इसका मकसद बताते हुए कहा, ‘जातियों और समुदायों के बीच आरक्षण का लाभ पहुंचने में किस हद तक असमानता है, इसका पता लगाया जाएगा। आयोग ओबीसी की जातियों की उप-श्रेणियां तय करने के तरीके और पैमाने तय करेगा।’ आयोग को 27 मार्च, 2018 तक अपनी रिपोर्ट सौंप देनी थी, लेकिन उसे कई बार सेवा विस्तार दिया गया।


    जातियों के अंदर उप-जातियां

    देश में एक जाति के अंतर्गत कई उपजातियां हैं। केंद्र सरकार की सूची में ही 2,633 जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया है। आयोग ने इस वर्ष सरकार को सुझाव दिया था कि इन्हें चार वर्गों में बांटकर क्रमशः 2, 6, 9 और 10 प्रतिशत आरक्षण दे दिया जाए। इस तरह, ओबीसी के लिए तयशुदा 27 प्रतिशत का आरक्षण उपजातियों के चार वर्गों में बंट जाएगा। आंध्र प्रदेश में भी OBCs को ‘A, B, C, D, E’ में बांटा गया है। वहीं, कर्नाटक में OBCs के सब-ग्रुप के नाम ‘1, 2A, 2B, 3A, 3B’ हैं।

    आरक्षण की बंदरबांट

    दरअसल, आरक्षण लाभ के समान वितरण को सुनिश्चित करने के लिए OBC लिस्ट को समूहों में बांटने की राय दी गई है जिससे 27 फीसदी आवंटित मंडल आरक्षण में कुल पिछड़ी जाति की आबादी को शामिल किया जा सके। उप-वर्गीकरण के बाद ‘बैकवर्ड्स में फॉरवर्ड्स’ 27% में से केवल एक हिस्से के लिए योग्य होंगे जो मौजूदा स्थिति से बिल्कुल उलट है। फिलहाल इनका शेयर असीमित है। इनके बारे में कहा जाता है कि ये आरक्षण लाभ का बड़ा हिस्सा झटक लेते हैं। 27% कोटे का बाकी हिस्सा सबसे ज्यादा बैकवर्ड समूहों के लिए होगा और इससे उन्हें ‘बैकवर्ड्स में फॉरवर्ड्स’ के साथ प्रतिस्पर्धा से बचने में मदद मिलेगी।


    938 जातियां रहीं खाली हाथ

    केंद्रीय विभागों और बैंकों में होने वाली भर्तियों के डेटा एनालिसिस से आयोग ने पाया कि 10 जातियों को 25 फीसदी लाभ मिला है जबकि 38 अन्य जातियों ने दूसरे एक चौथाई हिस्से को घेर लिया। करीब 22 फीसदी लाभ 506 अन्य जातियों को मिला। इसके विपरीत 2.68 फीसदी लाभ 994 जातियों ने आपस में शेयर किया। गौर करने वाली बात यह है कि 983 जातियों को कोई लाभ ही नहीं मिल पाया। इससे साफ हो गया है कि कुछ जातियों का ही कोटा लाभ में दबदबा रहता है। ऐसे में आयोग OBCs की केंद्रीय सूची को बांटने की सिफारिश करेगा।

  • पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश

    राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) ने वर्ष 2015 में ओबीसी जातियों को अति पिछड़ा वर्ग, ज्यादा पिछड़ा वर्ग और पिछड़ा वर्ग में बांटने की सिफारिश की थी। उसने कहा था कि सालों से आरक्षण का लाभ दबदबे वाली ओबीसी जातियां (पिछड़ों में अगड़े) हड़प ले रही हैं। इसलिए अन्य पिछड़े वर्ग में भी उप-वर्गीकरण करके अति-पिछड़ी जातियों के समूहों की पहचान करना जरूरी हो गया है। ध्यान रहे कि एनसीबीसी को सामजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के कल्याण, उनकी शिकायते सुनने और उनके समाधान ढूंढने का अधिकार प्राप्त है।

    हंगामा मचाएगी रोहिणी आयोग की सिफारिश?

    बहरहाल, सब-कैटिगरी बनने से ‘बैकवर्ड्स में फॉरवर्ड्स’ नाराज हो सकते हैं क्योंकि वे खुद को लूजर समझ सकते हैं। दरअसल, ये समूह राजनीतिक और आर्थिक रूप से मजबूत होते हैं और इनका दबदबा रहता है। इनकी नाराजगी से बचने के लिए ही आयोग ने ‘सबसे ज्यादा पिछड़े’ और ‘अति पिछड़े’ जैसे नए सब-ग्रुप को नाम या टाइटल देने की जगह उन्हें कैटिगरी 1, 2, 3, 4 में बांटने की सिफारिश कर दी है। इस तरह के लेबल्स बिहार और तमिलनाडु राज्यों में अपनाए गए हैं।

    बदल सकती है कुछ राज्यों की राजनीति

    जस्टिस रोहिणी कमिशन ने ओबीसी से जुड़े सारे आंकड़ों को डिजिटल मोड में रखने और ओबीसी सर्टिफिकेट जारी करने का स्टैंडर्ड सिस्टम बनाने की भी सिफारिश की है। अगर इन सिफारिशों को लागू कर दिया गया तो देश की राजनीति पर भी खासा असर पड़ेगा। खासकर, बिहार, यूपी समेत उत्तर भारत के कई राज्यों की राजनीति में नई जातियों के दबदबे का उभार देखा जा सकता है। ध्यान रहे कि मंडल कमिशन के बाद 1990 के दशक से बिहार की राजनीति में यादव जाति बड़ी प्रभावशाली भूमिका निभाने लगी। अब वहां जातीय जनगणना की नींव रखी दी गई है। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी (सपा) के चीफ अखिलेश यादव भी जातीय जनगणना का खुलकर समर्थन कर रहे हैं।

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