
मप्र कांग्रेस की राजनीति में कमलनाथ भले ही पूर्व मुख्यमंत्री रहे तथा वर्तमान में कांग्रेस अध्यक्ष हैं परंतु राजनीतिक रूप से वे विकलांग ही है। ग्वालियर चंबल संभाग में कमलनाथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत से लेकर समाचार लिखे जाने तक कांग्रेस के नेता तो हो सकते हैं परंतु प्रदेश तथा अंचल के किसी भी कोने में कोई मजबूत पकड़ नहीं बना पाए और उनकी रणनीति नेता की तरह न होकर कॉरपोरेट जैसी बनी रही तो पकड़ बन भी न पाएगी।
राजनीतिक रूप से ग्वालियर चंबल संभाग में कांग्रेस की राजनीति में अभी भी दिग्विजय सिंह का परचम लहरा रहा है।कांग्रेस से भारतीय जनता पार्टी सरकार में 5 साल तक मंत्री का दर्जा आनंद लेने वाले बालेंद्र शुक्ला जो कई चुनाव हार चुके हैं।कांग्रेस की राजनीति में नेता प्रतिपक्ष रहते हुए कांग्रेस को शर्मनाक हादसे की ओर धकेलने वाले चौधरी राकेश सिंह भी कई चुनाव हार चुके हैं और अब वह भी शुक्ला की तर्ज पर कांँगेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी फिर कांग्रेस चौखट पर दोहरी निष्ठा के साथ खड़े हैं। ठीक इसी प्रकार दिग्विजय सिंह के अनुज लक्ष्मण सिंह की राजनीतिक निष्ठानाओ तथा बयानबाजी से सब जानते हैं।
क्या कमलनाथ ने पूर्व अध्यक्ष पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया की हार को नहीं देखा? क्या प्रताप भानु शर्मा, रामेश्वर नीखरा चुनाव नहीं हारे, क्या राजमणि पटेल चुनाव नहीं हारे, क्या सज्जन वर्मा और जीतू पटवारी चुनाव नहीं हारे, क्या इंदिरा गांधी की तस्वीर पर कालिख पोतने वाले मानिक अग्रवाल चुनाव नहीं हारे।
शेष अगले अंक में तृतीय किस्त