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मप्र के नए मुख्यमंत्री मोहन यादव का नाम चौंकाने वाला रहा। इसके साथ ही मध्यप्रदेश का सीएम बनने की दौड़ से सभी नाम बाहर हो गए। अब मप्र की कमान मोहन यादव के हाथ में रहेगी। यानी प्रदेश में अब शिव का राज नहीं मोहन का राज होगा। मोहन यादव ने अपने राजनीति सफर की शुरुआत छात्र जीवन से की थी। अब वे प्रदेश के सत्ता के शीर्ष पर विराजमान हो गए हैं।
महाकाल भक्त हैं मोहन
विधायक दल के नेता चुने गए मोहन यादव ने कहा कि मैं शीर्ष नेतृत्व का आभार जताता हूं। उन्होंने मुझे बड़ी जबाबदारी दी है। मुझ पर विश्वास जताया है। ये भाजपा ही है जो एक छोटे से कार्यकर्ता को यहां तक पहुंचा सकती है। ‘एमपी के मन में मोदी के मन में मोदी’ इसी थीम पर काम करेंगे। इसके बाद मोहन यादव प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के साथ भाजपा ऑफिस से रवाना हो गए।
गोविंद सिंह राजपूत ने कहा, मोहन जी बहुत सुलझे हुए व्यक्ति हैं वे मध्यप्रदेश को आगे ले जाएंगे। राजपूत ने कहा, जमीन से जुड़े व्यक्ति को मुख्यमंत्री का दायित्व दिया गया है। ओबीसी वर्ग से आते हैं, हमारे मित्र हैं, मैं उन्हें बधाई देता हूं। हरदीप सिंह दंग ने कहा कि ये भाजपा है जो एक छोटे से कार्यकर्ता को सीएम बना देती है। मैं उन्हें बधाई देता हूं।
41 वर्षों का राजनीतिक संघर्ष
डॉ. मोहन यादव को मंत्री पद तक पहुंचने के लिए 41 वर्षों तक संघर्ष करना पड़ा है। 25 मार्च 1965 को जन्मे यादव को RSS का करीबी माना जाता है वह राज्य में सर्वमान्य OBC वर्ग नेता भी हैं। उन्होंने माधव विज्ञान महाविद्यालय से छात्र राजनीति की शुरुआत की थी। पार्टी में कई पदों पर रहने के बाद सरकार में उन्हें मंत्री बनने का मौका मिला है। कई बार वह बयानों को लेकर प्रदेश की राजनीति में चर्चा में रहे हैं। 1982 में वे माधव विज्ञान महाविद्यालय छात्रसंघ के सह-सचिव और 1984 में माधव विज्ञान महाविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे हैं। उन्होंने वर्ष 1984 मे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद उज्जैन के नगर मंत्री और 1986 मे विभाग प्रमुख की जिम्मेदारी संभाली। यही नहीं वर्ष 1988 में वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद मध्यप्रदेश के प्रदेश सहमंत्री और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे हैं।
1989-90 में परिषद की प्रदेश इकाई के प्रदेश मंत्री और सन 1991-92 में परिषद के राष्ट्रीय मंत्री रह चुके हैं।1993-95 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, उज्जैन नगर के सह खंड कार्यवाह, सायं भाग नगर कार्यवाह और 1996 में खण्ड कार्यवाह और नगर कार्यवाह रहे हैं। संघ में सक्रियता की वजह से मोहन यादव 1997 में भाजयुमो प्रदेश समिति में अपनी जगह बनाई। 1998 में उन्हें पश्चिम रेलवेबोर्ड की सलाहकार समिति के सदस्य भी बने। इसके बाद उन्होंने संगठन में रहकर अलग-अलग पदों पर काम किया।
2004-2010 के बीच वह उज्जैन विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष (राज्यमंत्री दर्जा) रहें। 2011-2013 में मध्यप्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम, भोपाल के अध्यक्ष (कैबिनेट मंत्री दर्जा) भी बने। पहली बार 2013 में वह विधायक बने। 2018 में भी पार्टी ने उनपर भरोसा किया और वह चुनाव जीतने में सफल रहे। 2020 में जब बीजेपी की सरकार बनी तो मोहन यादव फिर से मंत्री बने।
5 प्रमुख तथ्य
- आरएसएस की पसंद– मोहन यादव आरएसएस खेमे से हैं। विद्यार्थी परिषद से राजनीति में आए। सीएम के नाम में संघ का समर्थन मिला।
- ओबीसी चेहरा– आदिवासी बाहुल्य छत्तीसगढ़ की तर्ज पर मध्य प्रदेश में ओबीसी चेहरे को ही प्राथमिकता में रखा। मध्य प्रदेश में ओबीसी की संख्या 50 प्रतिशत के करीब है। ओबीसी होने का फायदा मिला है।
- यादव कार्ड– प्रदेश के ग्वालियर चंबल, बुंदेलखंड और निमाड़ में यादव वोटरों को साधा। साथ ही उत्तर प्रदेश की राजनीति पर भी प्रभाव है। देश भर में करीब 12 करोड़ वोटर हैं।
- नई लीडरशिप को बढ़ावा– प्रदेश में बदलाव की रणनीति पर केंद्रीय नेतृत्व आगे बढ़ा। दिग्गजों के नाम के बीच युवा नई लीडरशिप में मोहन यादव को मौका मिला। यादव 58 साल के हैं।
- लो प्रोफाइल– मोहन यादव को लो प्रोफाइल रहने का फायदा मिला। प्रदेश में दिग्गज नेताओं के नाम की चर्चा के बीच कार्यकर्ता बनकर काम करने का तोहफा मिला।
यादव के पास पीएचडी की डिग्री
डॉ मोहन यादव मध्य प्रदेश सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री रहे हैं. छात्र राजनीति से करियर की शुरुआत करने वाले मोहन यादव उज्जैन दक्षिण से विधायक हैं। 58 साल के यादव ने इस सीट से तीसरी बार जीत हासिल की है। मोहन यादव के पास एमबीए और एलएलबी के साथ ही पीएचडी की भी डिग्री है। साथ ही वह कारोबार और कृषि क्षेत्र से भी जुड़े रहे हैं। डॉ मोहन यादव के चुनावी हलफनामे अनुसार उनके पास 4.20 करोड़ रुपए की संपत्ति है।