अयोध्या में अगले साल 22 जनवरी 2024 को भगवान श्रीराम की मूर्ति स्थापना के मौके पर खालसा फौज निहंग सिंह जत्था बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर ने लंगर लगाने हेतु बुधवार को राम मंदिर ट्रस्ट को पत्र लिखकर अनुमति मांगी थी जो कि शनिवार को उन्हें प्राप्त हो गई है।
बुधवार को उन्होंने कहा कि सिख पंथ को हिंदू धर्म से अलग करके देखने वाले कट्टरपंथियों को जानना चाहिए कि राम मंदिर के लिए पहली एफआईआर हिंदुओं के खिलाफ नहीं बल्कि सिखों के खिलाफ हुई थी। सिख पंथ ही सनातन हिंदू धर्म संस्कृति का अभिन्न अंग और धर्म रक्षक योद्धा है। अयोध्या में श्रीराम मंदिर के इतिहास का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि 30 नवंबर, 1858 को निहंग सिंहो ने भारी विरोध और जद्दोजहद करते हुए बाबरी मस्जिद का जबरन ताला तोड़कर मुख्य द्वार से अंदर जाकर कब्जा करके वहां हवन किया था और सभी दीवारों पर श्रीराम लिखा था।
इस मामले में निहंग सिखों पर दर्ज एफआईआर में लिखा गया था कि निहंग सिख बाबरी मस्जिद में घुस गए और वहां हवन कर रहे हैं। इस मामले में निहंग सिंह बाबा हनुमान सिंह जी एवं बाबा फकीर सिंह जी सहित अन्य के विरुद्ध केस दर्ज हुआ था। निहंगों के इस जत्थे ने करीब डेढ़ माह तक यहां डेरा रखा उसके बाद हिन्दू भाईचारे को कब्जा देकर वापस चले गए थे।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में जिक्र
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पेज संख्या 799 में ‘मस्जिद परिसर से निहंग सिंह फकीर का सबूत’ नामक उप शीर्षक को दर्ज किया गया है। जिसमें लिखा है कि 28 नवंबर 1858 को अयोध्या के तत्कालीन थानेदार थानेदार शीतल दुबे ने एक आवेदन दायर किया जिसमें कहा गया था कि पंजाब के रहने वाले निहंग सिंह फकीर सिंह खालसा ने मस्जिद परिसर के भीतर ने हवन और पूजा का आयोजन किया और परिसर के भीतर श्रीराम भगवान का प्रतीक बनाया।
थानेदार थानेदार शीतल दुबे का आवेदन
उसमें लिखा है कि 28 नवंबर 1858 को अयोध्या के तत्कालीन थानेदार थानेदार शीतल दुबे ने एक आवेदन दायर किया, जिसमें कहा गया था कि पंजाब के रहने वाले निहंग सिंह फकीर खालसा ने मस्जिद परिसर के भीतर गुरु गोविंद सिंह की फौज ने हवन और पूजा का आयोजन किया और परिसर के भीतर श्रीराम भगवान का प्रतीक बनाया। 30 नवंबर 1858 को बाबरी मस्जिद के मोअज्जिन सैयद मोहम्मद खतीब ने स्टेशन हाउस ऑफिसर के समक्ष केस संख्या 884 को दर्ज कराया। जिसमें कहा गया कि निहंग सिख द्वारा मस्जिद परिसर में स्थापित निशान को हटाया जाए।
सैयद मोहम्मद खतीब ने अपनी FIR रिपोर्ट में लिखा-
निहंग सिंह मस्जिद में दंगा पैदा कर रहे थे। उन्होंने मस्जिद के अंदर जबरन चबूतरा बनाया है, मस्जिद के अंदर मूर्ति रखी, आग जलाई और पूजा की। उन्होंने मस्जिद की दीवारों पर कोयले के साथ चारकोल से राम राम शब्द लिखे। मस्जिद मुसलमानों की पूजा का स्थान है, न कि हिंदुओं का। अगर कोई इसके अंदर जबरन किसी चीज का निर्माण करता है, तो उसे दंडित किया जाना चाहिए। इसी रिपोर्ट के आधार पर fir दर्ज की गई थी।
बाबा हरजीत सिंह ने बताया कि यही नहीं इससे पहले भी स्थानीय हिंदू भाईचारे ने जब गुरु गोबिंद सिंह जी को पत्र लिखकर हस्तक्षेप करने व न्याय दिलाने की मांग की थी तब भी गुरु साहब ने अपनी फ़ौज भेजकर कब्जा छुड़वाया था। 1858 में जब खालसा फौज पुनः श्री राम मंदिर पर मुस्लिम पक्ष के कब्जे से छुड़ाने पहुंची थी।
मंदिर-मस्जिद की अदालती लड़ाई में निर्मोही अखाड़ा के अधिवक्ता रहे तरुणजीत वर्मा कहते हैं, इसी घटना के आधार पर हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक ने यह स्वीकार किया कि 1858 तक उस स्थल पर कभी नमाज ही नहीं पढ़ी गई, जिसे दूसरा पक्ष मस्जिद की भूमि बताता है। साकेत महाविद्यालय में इतिहास की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कविता सिंह के अनुसार, यह घटना सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद अहम है और इससे सिद्ध होता है कि हिंदुओं और सिखों की जड़ें कितनी अभिन्न हैं। सुप्रीमकोर्ट में राममंदिर के पक्षकार एवं ‘अयोध्या रिविजिटेड’ नाम से रामजन्मभूमि के संदर्भ में प्रामाणिक ग्रंथ लिखने वाले महावीर सेवा ट्रस्ट के सचिव तथा पूर्व आइपीएस अधिकारी किशोर कुणाल के अनुसार, जिस समय निहंगों ने विवादित ढांचे पर धावा बोला उस समय भी रामजन्मभूमि पर बना करीब 18 फीट लंबा एवं 15 फीट चौड़ा प्राचीन चबूतरा कायम था, जिसका स्पर्श हिंदू जन्मस्थान मानकर काफी आदर से करते थे और निहंगों ने भी इस चबूतरे की पूजा की।
बाबा हरजीत सिंह, बाबा फकीर सिंह की आठवीं पीढ़ी के वंशज हैं। उन्होंने कहा कि उनका किसी भी राजनीतिक दल के साथ संबंध नहीं है। वे केवल सनातन परंपराओं के वाहक हैं। वे कई बार अयोध्या भी जा चुके हैं। अब उन्होंने राम मंदिर न्यास समिति से आग्रह किया है कि 22 जनवरी 2024 को मूर्ति स्थापना के अवसर पर उन्हें अयोध्या में लंगर लगाने की इजाजत दे दी है अब हम पूर्ण आस्था और सेवाभाव से श्रद्धालुओं के लिए लंगर की व्यवस्थाओ में जुट गए है।
चंडीगढ़ के सैक्टर-47 में रहने वाले जत्थेदार बाबा हरजीत सिंह मूल रूप से पंजाब के जिला रोपड़ के गांव रसूलपुर के रहने वाले हैं। वर्ष 1858 में राम मंदिर आंदोलन में सर्वप्रथम एफआईआर 25 निहंग सिंहो के खिलाफ दर्ज हुई थी उन्ही सिंहो में से एक थे बाबा फकीर सिंह जी जत्थेदार हरजीत सिंह बाबा फकीर सिंह जी की आठवीं पीढ़ी के वंशज हैं। जत्थेदार बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर ने कहा कि उनके पूर्वज बाबा फकीर सिंह ने मुस्लिमों से मंदिर को आजाद करवाने के लिए सबसे पहले मोर्चा लगाया था। बाबा फकीर सिंह उस समय हवन करने वाले निहंगों में शामिल थे। जिसके चलते उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई और उन्होंने कई यातनाएं भी सही। बाबा फकीर सिंह व उनके परिवार को आजतक उचित मान सम्मान नहीं मिला अतः उन्होंने कहा कि जहां अब राम मंदिर आंदोलन सफल हो गया है भगवान श्रीराम के जन्मस्थान पर रामलला विराजमान हो रहे हैं तो मुगलों के कब्जे छुड़वाने के लिए कुर्बानी करने वालों का नाम भी सुनहरी अक्षरों में लिखा जाना चाहिए। जत्थेदार बाबा हरजीत सिंह ने कहा कि जब भी देश व धर्म को जरूरत पड़ेगी तो वह तथा उनका परिवार कभी पीछे नहीं हटेंगे।
संघर्ष का साक्षी रहा गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड
गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड पुण्यसलिला सरयू के उस प्राचीन तट पर स्थित है, जहां प्रथम गुरु नानकदेव, नवम गुरु तेगबहादुर एवं दशम गुरु गोविंद सिंह समय-समय पर आए। सन 1668 में नवम गुरु के आगमन को समीक्षक जन्मभूमि की मुक्ति के प्रयासों से जोड़कर देखते हैं। सन 1672 में दशम गुरु गोविंद सिंह मात्र छह वर्ष की अवस्था में मां गुजरीदेवी एवं मामा कृपाल सिंह के साथ यहां पहुंचे और यह संदेश दिया कि अयोध्या और रामजन्मभूमि का सिख परंपरा से सरोकार कितना गंभीर है। कालांतर में यह सरोकार और स्पष्टता से भी परिलक्षित हुआ। ‘रामजन्मभूमि मुक्ति संघर्ष का इतिहास’ पुस्तक के अनुसार राम मंदिर के लिए संघर्षरत निर्मोही अखाड़ा के साधु वैष्णवदास ने गुरु गोविंद सिंह से मदद मांगी थी और निहंगों की सहायता से वैष्णवदास ने फौरी तौर पर कामयाबी भी हासिल की थी।
18 वीं सदी के उत्तरार्ध में कश्मीर के बाबा गुलाब सिंह ने इस स्थल को नए सिरे से सहेजने के साथ रामजन्मभूमि मुक्ति का संघर्ष भी आगे बढ़ाया। इसके बाद गुरुद्वारा में पांच अगुआ हुए और सभी राममंदिर के लिए प्रयासरत रहे। गुरुद्वारा के मुख्यग्रंथी ज्ञानी गुरुजीत सिंह भी मंदिर आंदोलन के सक्रिय संवाहक रहे हैं। मंदिर निर्माण शुरू होने की बेला में उत्साहित ज्ञानी गुरुजीत कहते हैं, हमें गर्व है कि हमारे पूर्वज सदियों से मंदिर की मुक्ति के संघर्ष में शामिल रहे हैं। हम अब वह दिन देखने के लिए बेकरार हैं, जब रामलला का अद्भुत-अकल्पनीय मंदिर बनेगा।