रशिया से आई राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी संतोष दीदी ने ईश्वरीय शक्तियों से चुनौतियों का सामना विषय पर दिया व्याख्यान
ग्वालियर। तकनीकी विकास के दौर में दुनिया में अनेक प्रकार के गैजेट्स आ गए हैं लेकिन भारत की शक्ति साइलेंस पावर के गैजेट्स में है जो हमें अंतर अनुभूति कराता है। यह विचार रशिया केंद्र की प्रभारी राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी बीके संतोष दीदी ने शुक्रवार को भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान (आईआईटीएम) में आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि हमें रोग शोक चिंता और दरिद्रता मुक्त समाज बनाना है। जिसके लिए लोगों को आत्मिक शक्ति को जागृत करना होगा। उन्होंने बताया कि बचपन से ही झांसी की रानी मेरी आइडियल थी और मैं 18 वर्ष तक उन्हीं के जैसे बनने के बारे में सोचती थी। लेकिन इस बीच जब ब्रह्माकुमारीज संस्थान से जुड़ी तो मुझे माउंट आबू जाने का अवसर मिला और वहां जाकर तीन दिन में आत्मिक शांति का अनुभव करते हुए देश सेवा और विश्व सेवा की प्रेरणा मिली।
प्रकाश को शक्ति में बदलने करें फोकस….
जिस तरह सूर्य की रोशनी कागज पर पड़ने से वह नहीं जलता, लेकिन जब लैंस लगाकर उस पर फोकस किया जाता है, तो वह जलने लगता है। अर्थात प्रकाश को शक्ति में बदलने की लिए फोकस करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि भारत से बाहर भारत की महिमा ज्यादा है। भारत की पहचान बाह्य साधनों से नहीं बल्कि आंतरिक शक्ति से है। विदेशी भी बाह्य साधनों से त्रस्त होकर भारत की आत्मिक शक्ति को अपनाना चाहते हैं।
खुशहाल जीवन का दिया टिप्स……
उन्होंने खुशहाल जीवन जीने का टिप्स देते हुए बताया कि शरीर के साथ साथ आत्मा और मन को शक्तिशाली बनाने के लिए या चार्ज करने के लिए सुबह उठना बेहद जरूरी है। सुबह उठकर जब हम अपने मन की तार परमात्मा से जोड़ते हैं, तो मन की सारी उदासी दूर हो जाती है और हम फिर से काम करने के लिए तरोताजा हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति यहां किरदार निभा रहा है, जिसे निभाते हुए हमें आत्म दर्शन करना है।
राजयोग की शिक्षा है तीसरी आंख…..
उन्होंने कहा कि जब भी तीसरे नेत्र की बात जेहन में आती है तो भगवान शिव की उस असीम उर्जा का ख्याल आता है, लेकिन दसअसल वह मन की आंख है, जिससे हम वो सब भी देख सकते हैं जो दो आंखों से नजर नहीं आता। यह तीसरा नेत्र ही भारत की आत्मिक संपदा है। यह वह धरती है जहां गीत गाकर बुझे हुए चिराग जला दिए जाते हैं। राजयोग की शिक्षा ही तीसरी आंख है, जो हमें परमात्मा से कनेक्ट करती है।
उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक मूल्य भारत की आंतरिक जड़ों में घुले हुए हैं,लेकिन हम बाह्य संसाधनों में सुख ढूंढ रहे हैं। पारिवारिक स्नेह, करुणा, प्रेम के बारे में दुनिया भारत से सीखना चाहती है, लेकिन अब हम स्वयं गेजेट्स से कनेक्ट होकर इन सबको भूलते जा रहे हैं। आरंभ में प्रभु उपहार भवन माधवगंज की इंचार्ज बीके आदर्श दीदी ने बुके देकर व छात्रा सृष्टी तोलानी ने नृत्य के माध्यम से संतोष दीदी का स्वागत किया।
तथा कार्यक्रम की शुरुवात दीप प्रज्वलन से हुई। कार्यक्रम का संचालन बीके डॉ गुरचरण भाई ने किया, वहीं आभार प्रदर्शन बीके प्रहलाद भाई ने किया। इस मौके पर पूर्व आईएएस बीएम शर्मा, चेंबर ऑफ कॉमर्स के मानसेवी सचिव दीपक अग्रवाल, डॉ हरिमोहन पुरोहित, आईआईटीटीएम के डॉ चंद्रशेखर बरुआ, व्यवसायी पीताम्बर लोकवानी, वरिष्ठ न्यूरो सर्जन डॉ जेपी गुप्ता, सिविल जज शिवकांत, कैट संस्थान से मनोज चौरसिया,भारत विकास परिषद से प्रिया तोमर,
नरेंद्र रोहिरा, ब्रजेश गुप्ता, आइएमए अध्यक्ष डॉ ब्रजेश सिंघल, जिला योग प्रभारी दिनेश चाकणकर,पूर्व लेखा परीक्षा अधिकारी एम एस यादव सहित अनेक गणमान्य नागरिक व शहरवासी मौजूद रहे।
श्रोताओं से किया संवाद
सवाल-कैसे पता करें कि हमेें ध्यान से ईश्वरीय शक्ति मिलना आरंभ हो गई है।
जबाव-जब हम ईश्वर से कनेक्ट हो जाते हैं तो हमें कभी थकान महसूस नहीं होती है, क्योंकि ईश्वर आंतरिक शक्तियों का स्विच ऑन कर देता है।
सवाल-हम जो सोचते हैं, वैसा क्यों नहीं कर पाते हैं?
जबाव- आंतरिक शक्तियों का संचय कर संकल्प लेकर जब हम आगे बढ़ते हैं तो जीवन में कुछ भी हासिल कर सकते हैं।
सवाल- ग्रहस्थ जीवन में रहते हुए एकाग्र कैसे हों, और कैसे परमात्मा से एकाकार हो?
जबाव- गृहस्थी को परमात्मा से मिलन में अवरोध न माने।
सवाल- कर्मकांड को लेकर मन में कन्फ्यूजन रहता है कि क्या करें और क्या न करें?
जबाव-कर्मकांड हमें परमात्मा के मार्ग में जाने की राह पर चलने के लिए अनुशासित करता है, लेकिन उसके साथ साथ मन का ट्रांसफोर्मेशन जरूरी है, तभी हमें लक्ष्य की प्राप्ति होगी।
सवाल- परमार्थ के लिए खुद को कैसे तैयार करें?
जबाव- जब कोई आपकी प्रशंसा करे तो आत्ममुग्ध न हों, बल्कि ये विचार करें कि मैं सिर्फ उपकरण हूं और मुझे चलाने वाला परमात्मा हैं।