December 23, 2024
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मैं जैसा पहले था वैसा अभी हूं

राजनीतिक समरसत्ता या शतरंज का खेल?

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव आते ही सभी राजनीतिक दलों के नेता सक्रिय हो गए है। मध्यप्रदेश में विपक्ष में मुख्य रूप से जिस तरह दिग्विजय सिंह सक्रिय होकर भाजपा पर आरोप-प्रत्यारोप तो जरूर लगाते हैं परंतु अंतरात्मा से राजनीतिक समरसत्ता भी निभाते हैं.

स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा जब मुख्यमंत्री थे तभी से दिग्विजय सिंह से उनके मधुर पारिवारिक संबंध है, सूत्रों अनुसार स्वर्गीय श्री पटवा ने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में दिग्विजय सिंह को भरपूर संरक्षण दिया शायद इसी कारण दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री कार्यकाल में छिंदवाड़ा लोकसभा उपचुनाव में कमलनाथ को सुंदरलाल पटवा के सामने हार का मुंह देखना पड़ा था। यह मजबूत राजनीतिक समरसता के संबंध ही थे शायद इसी कारण दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री कार्यकाल में पटवा के शिष्य सरताज सिंह के मुकाबले होशंगाबाद लोकसभा चुनाव में स्वर्गीय अर्जुन सिंह को भी हार का मुंह देखना पड़ा था। इसको राजनीतिक समरसता कहे तो बेहतर होगा शायद इसी कारण पुत्र मोह के चलते राजनीतिक समरसता से बेहतर संबंध होने के नाते मुख्यमंत्री पद के दावेदार अजय सिंह को विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा। शायद इसी कारण 2008 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथ से सत्ता की बागडोर इसलिए खिसकी क्योंकि अपने राजनीतिक सन्यास का कार्यकाल पूर्व होने के पहले दिग्विजय सिंह कांग्रेस को सत्ता से बाहर ही देखना चाहते थे संभवतः इसी राजनीतिक शतरंज के खेल के तहत कांग्रेस प्रत्याशियों के विरुद्ध सिंह समर्थक 70 विद्रोही प्रत्याशी खड़े हुए थे जिससे 45 से अधिक कांग्रेस प्रत्याशी 300 से 5000 मतों से हारे थे।

राजनीतिक समीक्षको की आज भी मान्यता है कि अगर 2008 विधानसभा चुनाव में सिंह समर्थक विद्रोही प्रत्याशी खड़े नहीं होते तो कांग्रेस उसी समय सत्ता में आ जाती।
शायद सक्रिय रूप से राजनीति करने वाले नेता आज भी नहीं भूले होंगे किस प्रकार राजनीतिक समरसत्ता के मजबूत संबंधों के कारण भाजपा सरकार में विदिशा लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी स्वर्गीय सुषमा स्वराज एकतरफा जीत के लिए राजकुमार पटेल पीठ के पीछे सिंह की शतरंजी चाल ही थी।
पटवा के घर से निकलते ही सीहोर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए दिग्विजय सिंह ने प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ की कार्यशैली पर ही सवालिया निशान तब खड़े कर दिए जब उन्होंने कहा हमारा संगठन कमजोर है हम बूथ मैनेजमेंट नहीं कर सकते संगठन को मजबूत करने की जरूरत है वह भी तब जब विधानसभा चुनाव नजदीक आ गए। कमलनाथ से इतने पारिवारिक मधुर सम्बन्ध हैँ, तभी तो सिंह ने महासचिव प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल को तब चुनौती दी जब अग्रवाल ने कहा कांग्रेस में मुख्यमंत्री का कोई चेहरा नहीं विधायक तय करेंगे तभी दिग्विजय सिंह की आवाज तेज हो गई कि कांग्रेस में मुख्यमंत्री का चेहरा कमलनाथ है कमलनाथ ही मुख्यमंत्री होंगे कही ये विरोध के बीज विधानसभा चुनाव में अंकुरित होकर 2008 की तरह शतरंज की चाल के तहत कांग्रेस को फिर सरकार से बाहर रखने का षड्यंत्र तो नहीं? आखिर ऐसा ऐनवक्त पर क्यों. मैं अभी जवान हूं मैं जैसा पहले था वैसा हूं फिर मुहावरे को सार्थक करने का सपना साकार होगा जब तक कांग्रेस नेतृत्व इतना सब कुछ होने के बाद भी अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर कानों में रुई डाल कर किसी राजनीतिक मजबूरी के कारण यह सब कुछ शतरंज के खेल की चालो को भापकर भी मौन रहेगा।

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