
सिटी टुडे। अपने छात्रजीवन से राजनीति में अजेय योद्धा रहे समाजवादी डॉक्टर गोविंद सिँह ने वर्ष 1990 में जनता दल के से पहला विधानसभा चुनाव लड़े और भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर लोकप्रिय नेता मथुरा प्रसाद महंत को 14816 वोटों से करारी शिकस्त देकर विधानसभा में पहुंचे थे उसके बाद वर्ष 1993 का विधानसभा चुनाव आते-आते वह कांग्रेस में शामिल हो गए तथा लहार विधानसभा क्षेत्र में अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत कर चुके डॉ गोविंद सिंह 1993 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में दूसरी बार भी 7833 वोटों से मथुरा प्रसाद महंत को हार के मुंह में धकेलकर दूसरी बार विधानसभा में पहुंचे थे। लहार के सर्वाधिक लोकप्रिय कद्दावर नेता डॉक्टर गोविंद सिंह राजनीति के गुणा भाग में माहिर है यह उनकी साम दाम दंड भेद की ही राजनीतिक बिसात थी कि वर्ष 1998 में भी डॉ गोविंद सिंह ने लगातार तीसरी बार मथुरा प्रसाद महंत को 6086 वोटों से चुनाव हराकर पटखनी दे दी थी हालांकि इस चुनाव में उनकी जीत का अंतर पिछले दो बार की तुलना में कम हुआ खैर जीत तो जीत होती है डॉक्टर साब लगातार तीसरी बार विधानसभा में पहुंच गए। राजनीतिक और धार्मिक मतभेदों के कारण रावतपुरा सरकार से उनका पुराना विरोधाभा, टकराव आज दिन तक चलता आ रहा है, बताया जाता है कि रावतपुरा सरकार ने ही गोविंद सिंह को शिकस्त देने के लिए बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी के रूप में अपने चहेते रहे रमाशंकर सिंह को चुनाव में उतारा रमाशंकर सिंह तो 4056 वोट से हार तो गए परंतु रमाशंकर सिंह से करारी भिंड़त के चलते भारतीय जनता पार्टी इसबार तीसरे स्थान पर रही।
वर्तमान परिदृश्य में डॉक्टर गोविंद सिंह अपने लहार विधानसभा क्षेत्र तथा भिंड जिले में ही नहीं वरन चंबल सम्भाग की राजनीति में अपनी दबंग जननेता की कार्यशैली के कारण लोकप्रिय हो चुके है तथा प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं की श्रेणी में आ चुके है।
डॉ गोविंद सिंह का वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में मुकाबला मथुरा प्रसाद महंत के पुत्र रमेश महँत जो बीएसपी प्रत्याशी के रूप में हाथी पर सवार थे से हुआ। पिता की हार का बदला लेने की ललक से चुनाव लड़े फिर भी रमेश महंत को भी सफलता नहीं मिली और वे 4000 से अधिक वोटो से चुनाव हार गए परंतु भारतीय जनता पार्टी इस बार भी तीसरे स्थान पर ही रही।
भाजपा की तीसरे स्थान पर आने का मुख्य कारण था भारतीय जनता पार्टी के बागी नेता। वर्ष 2013 तथा वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी द्वारा पुराने समाजवादी नेता रसाल सिंह को प्रत्याशी बनाया गया परंतु इस चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी के बागियों ने चुनाव में खड़े होकर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से डॉ गोविंद सिंह को जीत की राह सुलभ की।
अब आठवीं बार वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में डॉ गोविंद सिंह ने ताल ठोककर चुनावी रण में है परंतु भारतीय जनता पार्टी द्वारा अभी तक प्रत्याशी तय नहीं किया जा सका है वहीं इस बार डॉ गोविंद सिंह को घेरकर हार के मुंह में धकेलने के प्रयासों के तहत शुक्रवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 13 साल बाद पहली बार लहार विधानसभा क्षेत्र में एकसाथ पहुंचकर 370 करोड से अधिक के निर्माण कार्य का शिलान्यास कर विकास की गंगा बहाने की बात की है परंतु अहम सवाल तो ये है कि क्या भारतीय जनता पार्टी इस बार अपने बागी नेताओं को नियंत्रित कर सकेगी अथवा नहीं?
जातीय समीकरणों पर नजर मारें तहत इस विधानसभा क्षेत्र में 18000 क्षत्रिय, 40000 ब्राह्मण, 50000 हरिजन, 45000 कुशवाह,15000 गहोई, 13000 मुसलमान, 20000 बघेल, 4000 कौरव व मिलाकर शेष अन्य जाति के मतदाता कुल 2 लाख से अधिक मतदाता इस विधानसभा क्षेत्र में निवास करते हैं। सभी समाजों में लोकप्रिय एवं मजबूत पकड़ रखने वाले डॉ गोविंद सिंह अधिकतर अपने क्षेत्र में ही सक्रिय रहकर आम जनमानस के दुख सुख में सहभागी होकर राजनीतिक संबंधों से ऊपर उठकर व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर जनता से जुड़े है इसीलिए अजेय योद्धा डॉ गोविंद सिंह को भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व इस बार मात देने के लिए कार्य योजना पर अमल करना शुरू कर दिया है। राजनीतिक समीक्षकों के मुताबिक गोविंद सिंह की जीत के पीछे उनकी खुद की कार्यशैली लोकप्रियता के अलावा भाजपा के बागी नेताओं का अप्रत्यक्ष रूप से उनको हमेशा सहयोग रहता है।
एक अन्य जानकारी के मुताबिक कांग्रेस के अंदर भी कुछ नेता अपने राजनीतिक भविष्य की भूमि बनाने डॉ गोविंद सिंह को चुनावी रण भीतरघात करेंगे।