
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि आपराधिक कार्यवाही को रद्द किया जा सकता है, अगर जिस शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई है, उसमें अभियुक्त द्वारा किसी कार्य या अपराध में भागीदारी का खुलासा नहीं किया गया है।
तत्काल मामले में, आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई और उन पर आईपीसी की धारा 467,468, 420, 504, 506, 387 और 448 के तहत मामला दर्ज किया गया।
इसके बाद आरोपी ने प्राथमिकी/चार्जशीट को रद्द करने की मांग करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का रुख किया लेकिन उसे खारिज कर दिया गया।
अपील में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने शिकायत पर विचार नहीं किया था और इस मामले के अभियुक्त प्राथमिकी में उल्लिखित कथित अपराध से कैसे संबंधित हैं।
अदालत के अनुसार, जिस शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी, उसका सिर्फ अवलोकन करने से आरोपी द्वारा किए गए किसी भी अपराध का खुलासा नहीं होता है। अदालत ने यह भी कहा कि अभियुक्तों का दो बिक्री विलेखों से कोई लेना-देना नहीं है और न ही उनके पास वाद संपत्ति का कब्जा है और उन्होंने दस्तावेज़ को लिखने में कोई भूमिका नहीं निभाई है।
अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता ने अपीलकर्ताओं-अभियुक्तों को फंसाया है क्योंकि वे उस परिवार के सदस्य हैं जिसका शिकायतकर्ता के साथ विवाद है इसलिए उन पर दबाव बनाने के लिए मामला दायर किया गया था।
इस प्रकार, अदालत ने अपील की अनुमति दी और चार्जशीट को रद्द कर दिया।
शीर्षक: रमेश चंद्र गुप्ता बनाम यूपी राज्य
केस नंबर: एसएलपी सीआरएल 39 ऑफ 2022