मध्य प्रदेश सरकार की जनहितकारी योजना प्रत्येक मंगलवार को प्रत्येक विभाग में विभाग के मुखिया जनसुनवाई कर समस्याओं का निदान करेंगे परंतु परिवहन विभाग के आयुक्त मुकेश जैन अपनी पदस्थापना के बाद से ही सरकार के इन आदेशों का पालन ना करते हुए मुख्यालय में केवल जनसुनवाई का बोर्ड लटका रखा है परंतु आयुक्त मुख्यालय से नदारद रहते हैं. मध्य प्रदेश से आने वाले पीड़ित लोग जब जिला मुख्यालय की कार्यप्रणाली के विरुद्ध शिकायत करने आते हैं तो आयुक्त नदारद होने से उनकी गैरमौजूदगी में दूर दराज से आए पीड़ितों की शिकायतों की सुनवाई जब मुख्यालय में बैठे अपर आयुक्त के पास शिकायत करना जाते हैं उनकी शिकायत अपर आयुक्त भावनात्मक रूप से सुनकर जब अधीनस्थों को व्यवहारिक रुप से शिकायत के निराकरण के निराकरण के लिए निर्देशित नहीं सिफारिश करते हैं तो अधीनस्थ भी अच्छी तरह जानते हैं के आयुक्त से उनके सीधे संबंध ताला चाबी जैसे है इसलिए अपर आयुक्त के जनहितकारी निर्देश भी बोने साबित होते हैं विभाग की सभी छोटे बड़े अधिकारी जानते हैं आयुक्त के सीधे आदेश के अलावा वह उनकी टीम उपायुक्त एके सिंह तथा सपना जैन के आदेशों का ही पालन करते हैं अगर यह कहा जाए किस सरकार के जनहितकारी जनसुनवाई कार्यक्रम को आयुक्त ने खूंटी पर टांग रखा है तो कोई गलत नहीं होगा.
अधिकारी कर्मचारियों की प्रताड़ना के शिकार अभी तक अनुशासन के कारण अपना मुंह नहीं खोलते थे परंतु सीमा पार होने के बाद अब कर्मचारी अपनी पीड़ा नाम ना छापने की शर्त पर जग जाहिर करने लगे हम बात करते हैं परिवहन आयुक्त कि भोपाल में निजी निवास E 1/ 45 अरेरा कॉलोनी के बंगले की जहां पर कई कर्मचारी तो बंधुआ मजदूरी जैसे जीवन व्यतीत कर रहे हैं बताया जाता है कि एक आरक्षक चालक जिसकी पहले खिलचीपुर ड्यूटी थी तब से वह बंगले पर 10 घंटे की ड्यूटी मैडम हुकुम को पालन करने में गुजर जाती है जब इस आदिवासी कर्मचारी ने अपनी पीड़ा ऊपर तक पहुंचाई तो इसका स्थानांतरण तो मोती नाला हो गया परंतु आज दिन तक फरवरी 2022 से रिलीव नहीं किया गया 11 महीने से बंधुआ मजदूरों जैसी स्थिति में बताया जाता है इतना ही नहीं हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी के निर्देश पर सभी आईपीएस आईएएस वर्तमान तथा रिटायर्ड अधिकारियों के बंगलों से इन अधिकारियों एवं परिवारों की सेवा लगे कर्मचारियों को वापस उनके मूल स्थान पर आमद देने के लिए निर्देशित किया गया परंतु सूत्रों अनुसार आयुक्त ने अपने बंगले पर कुल 14 से अधिक कर्मचारियों में से एसएफ के 5 कर्मचारियों को तो रिलीव कर दिया परंतु 2nd बटालियन 13 बटालियन 29 बटालियन 25 बटालियन के 8 से अधिक कर्मचारी अभी भी आयुक्त के बंगले पर कार्यरत बताए जाते हैं जो गंभीर जांच का विषय है परंतु इन बटालियन के कमांडोट अथवा अन्य जिम्मेदार अधिकारी उनकी हिम्मत डीजी रैंक के आयुक्त परिवहन के बंगले से निजी सेवा में लगे कर्मचारियों को शासन के आदेश की तामील करने के बाद भी वापस बुलाने की हिम्मत नहीं है. आयुक्त की कर्मचारी विरोधी प्रताड़ना का शिकार एक अनुसूचित जाति जनजाति का आरक्षक तो भोपाल कैंप ऑफिस में अपनी आमद दर्ज कराने के कुछ दिन बाद ही 3 महीने से गैर हाजिर है केवल इसलिए कि वह प्रताड़ना से बच सकें. आखिर ऐसा क्यों नियम विरुद्ध आयुक्त कर रहे हैं आयुक्त के विरुद्ध निर्णय लेने वाले आयुक्त की कार्यप्रणाली से ना केवल हैरान है बल्कि कहा जाता है उनको आयुक्त पद से हटाने का मन भी सरकार बना चुकी है परंतु वह जितनी देर से निर्णय लेगी उतनी ही विभाग तथा सरकार की आयुक्त बदनामी करवाएंगे कुछ सूत्र दावा करते हैं इनकी पीठ के पीछे इन्हीं के गृह जिले के पूर्व मुख्यमंत्री का हाथ है हकीकत तो कोई जांच एजेंसी ही कर सकती है परंतु तय है के शासन तथा जनहित में आयुक्त की कार्यप्रणाली सरकार के आदेशों को ही चुनौती दी जा रही है.