सरकार रिपीट कराने के लिए दमखम लगा रही कांग्रेस के लिए इसी साल होने वाले विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी चुनौती होगी- 19 सीटों पर टिकट फाइनल करना। इसकी बड़ी वजह भी है।
दरअसल, इन 19 में से 13 सीटें वो हैं जहां से निर्दलीय जीतने वाले विधायकों ने कांग्रेस को विधानसभा में समर्थन दे रखा है और 6 सीटें वे हैं, जहां बसपा से जीतने वाले विधायक अब कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं।
खास बात ये भी है कि 13 निर्दलीयों में भी 10 कांग्रेस के बागी थे, जिन्होंने टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ा था। कांग्रेस के उम्मीदवार हार गए और बागी जीत कर विधानसभा पहुंच गए। इसके बाद जब सरकार संकट में आई तो सभी निर्दलीयों ने कांग्रेस सरकार को समर्थन दे दिया।
अब चुनाव से पहले टिकट की दावेदारी के जो हालात बन रहे हैं, उनको देखकर साफ लग रहा है कि कांग्रेस इन सीटों पर फिर से टिकट की लड़ाई और बगावत का सामना करेगी।
कांग्रेस की दुविधा है कि अगर मौजूदा विधायकों को टिकट देती है तो पिछली बार जिनकी हार हुई वे नेता बगावत कर सकते हैं और अगर पिछली बार के उम्मीदवारों को टिकट दी जाती है तो मौजूदा विधायक इन सीटों पर बगावत कर सकते हैं।
सूत्रों का कहना है कि जिन सीटों पर निर्दलीयों ने जीत हासिल की, वहां ज्यादातर जगह सचिन पायलट समर्थकों को टिकट मिला था। वहीं बगावत करके कांग्रेस उम्मीदवार को हराने वाले ज्यादातर कांग्रेसी अशोक गहलोत के समर्थक थे।
बाद में चुनाव जीतकर इन बागियों ने विधानसभा में सरकार को बचाने के लिए गहलोत को समर्थन दिया। कांग्रेस को समर्थन देकर विधानसभा में सरकार को मजबूत करने के बदले ये सभी इस बार कांग्रेस की टिकट के स्वाभाविक दावेदार बन गए हैं।
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के जो घोषित प्रत्याशी बगावत के कारण चुनाव में हारे वे निर्दलीय विधायकों का न सिर्फ विरोध कर रहे हैं बल्कि कांग्रेस संगठन से अपनी दावेदारी जता रहे हैं।
उनका कहना है कि बगावत के कारण वोटों का बंटवारा होने से उनकी हार हुई और हार के लिए सीधे तौर पर बागी जिम्मेदार हैं। 13 निर्दलियों में से महुआ से ओमप्रकाश हुड़ला, किशनगढ़ से सुरेश टांक और बहरोड़ से बलजीत यादव को दूसरे दलों से होने के कारण अलग भी रखा जाए तो बाकी 10 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों को कांग्रेस के बागियों ने ही हराया था