सिटी टुडे। एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी लगातार तीसरी बार सिखों की सर्वोच्च संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष चुन लिए गए हैं।
आज हुए चुनाव में कुल 137 वोट डाले गए जिसमें शिरोमणि अकाली दल (बादल) हरजिंदर सिंह धामी को 118 मत मिले। शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) के उम्मीदवार बाबा बलबीर सिंह घुनस को 17 वोट मिले। राजिंदर सिंह मेहता को जनरल सेक्रेटरी चुना गया।
तथ्य
भारत में सिखों के धार्मिक स्थलों का प्रबंधन और रखरखाव करने वाली संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) की स्थापना 15 नवंबर 1920 को हुई थी। SGPC की स्थापना भारत में गुरुद्वारों की व्यवस्था व आवयश्क सुधार के नजरिए से की गई थी साथ ही इसका मकसद गुरुद्वारों को महंतों से मुक्ति दिलाना व धर्मप्रचार करना भी था।
दरअसल गुरुद्वारों के प्रबंधन की शुरुआत गुलाम भारत के ब्रिटिश काल में हुई थी 1920 में जब SGPC पहली कमेटी बनाई गई तो इसमें सिर्फ 36 सदस्य थे मौजूदा स्थिति में 190 सदस्यीय SGPC में 170 निर्वाचित सदस्यों के अलावा 15 कोऑप्टेड सदस्य और 5 तख्त जत्थेदार हैं परन्तु वोटिंग अधिकार सिर्फ निर्वाचित सदस्यों के पास ही होता है। 1999 में पहली बार किसी महिला को SGPC का अध्यक्ष चुना गया और बीबी जागीर कौर को ये जिम्मेदारी मिली थी।
SGPC को आजादी की लड़ाई की पहली जीत बताया महात्मा गांधी ने
SGPC की स्थापना के 5 साल बाद यानी 1925 में सिख समुदाय ने ब्रिटिश हुकूमत के साथ जद्दोजहद करके गुरुद्वारा एक्ट पारित करवाने में सफलता हासिल की। ब्रिटिश हुकूमत से गुरुद्वारा एक्ट पास करवाना आसान नहीं था स्वर्ण मंदिर परिसर सहित कई प्रमुख गुरुद्वारों पर महंतों का नियंत्रण था जो आसानी से हार नहीं मानने वाले थे। एसजीपीसी को गुरुद्वारा से महंतों को बाहर करने के लिए भी कड़ी मशक्कत करनी पड़ी यही कारण है कि गुरुद्वारा एक्ट बनने के बाद महात्मा गांधी ने इस उपलब्धि को आजादी की लड़ाई की पहली जीत बताया था।
SGPC संस्था की शुरुआत भले ही गुरुद्वारों की देखभाल प्रबंधन और रखरखाव के लिए की गई हो, लेकिन आज ये कमेटी कई शैक्षणिक संस्थाओं जिसमें स्कूल, मेडिकल कॉलेज, विद्यालय अस्पताल और कई चैरिटेबल ट्रस्ट भी संचालित करती है और भारत में सिखों की संसद के रूप में जानी जाती है अतः राजनीतिक नजरिए से इसका अत्यधिक महत्व है।