December 23, 2024
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सिटी टुडे। 1977 के पूर्व  इस अंचल के अंदर कांग्रेस लगभग शून्य जैसी स्थिति में थी उस जमाने के कद्दावर नेता स्वर्गीय श्री नरसिंह राव दीक्षित गौतम शर्मा, स्वर्गीय श्री कक्का डोंगर सिंह व उनके पुत्र स्वर्गीय पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह गिने चुने नेता थे परंतु कांग्रेस के अंदर 1977 में ही एक नए सूर्य का आगमन हुआ वह थे कैलाशवासी स्वर्गीय महाराज माधवराव सिंधिया जिन्होंने गुना संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के समर्थन से सूर्य का चुनाव चिन्ह पर लोकसभा का चुनाव  लड़कर लोकसभा में दस्तक दी। 

1980 में जब वह कांग्रेस में शामिल हुए तब इस अंचल में लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में विपक्ष का सूपड़ा साफ हो गया जो उनके जीवित काल तक निरंतर कायम रहा उनके दुख निधन के बाद अंचल की कांग्रेस की बागडोर श्री ज्योतिरालितया सिंधिया के हाथ में रही तो जरूर परंतु कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मुख्य रूप से दिग्विजय सिंह कमलनाथ ने मिलकर गुटबाजी के चलते कांग्रेस के अंदर ही सिंधिया के खिलाफ खुला विद्रोह 2008 से ही शुरू कर दिया था परंतु सिंधिया इस विद्रोह का मुकाबला करते रहे विपक्ष ओर कांग्रेस के अंदर दोनो का एक साथ संघर्ष करते हुए श्री सिंधिया ने ही सक्रिय भूमिका निभाते हुए अपनी मेहनत व उनके निष्ठावान कार्यकर्ताओं  की टीम ने ही 14 साल बाद कांग्रेस को सत्ता में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। परंतु इसका नतीजा कांग्रेस की गुटबाजी इतनी चरम सीमा पर पहुंची, डिग्गी कमलनाथ की जोड़ी ने कुर्सी का मोह  बरकरार रख संगठन के अंदर सिंधिया के विरुद्ध हद की सभी सीमाएं लांघ थी 19 महीने तक लगातार सिंधिया ने बर्दाश्त करने के बाद सरकार का तख्ता पलट कर भा जा पा को सत्ता में लाकर मजबूत किया तब कांग्रेस फिर शुन्य हो एक होटल में कैद हो गई क्योंकि कांग्रेस के सभी धरातल स्तर के नेता सिंधिया के साथ हो गए।

स्वर्गीय राजेंद्र सिंह जी के पुत्र अशोक सिंह जो लगातार तीन लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी कांग्रेस संगठध में कमल दिग्विजय के चहेते बंद कर कांग्रेस के सूत्रधार बन गए थे कई कांग्रेस नेता बे मन से होटल में कैद कांग्रेस मे सक्रिय रहे परंतु उनके पास कोई मजबूत नेता नहीं था।

राजनीतिक परिस्थितियों वंश सिकरवार परिवार को भा जा पा से अलविदा होकर कांग्रेस ने सम्मान के साथ गले लगाया अंचल में छात्र राजनीति से 40 वर्ष पूर्व सक्रिय श्री गजराज सिंह सिकरवार मुरैना जिले से दो बार विधायक रहे उसके बाद उनके पुत्र नीटु सिकरवार विधायक बने बहु शोभा सिकरवार तीन बार  जेष्ठ पुत्र सुबह सिकरवार के पति सतीश सिकरवार दो बार निगम के पार्षद निर्वाचित हुए इस दौरान पूरे परिवार ने मुरैना ही नहीं ग्वालियर महानगर में जनसेवा का बीड़ा उठाकर राजनीति से हटकर  सक्रिय रहकर हर स्तर पर जन सेवा करते हैं करोणा काल मे उनकी हमदर्दी तथा जनसेवा ने मतदाता के मन में एक सिकरवार परिवार के प्रति मतदाता के मन मे मजबूत भावना बना दी इसी का नतीजा हुआ कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार रहते हुए भी सतीश ने विधानसभा का चुनाव लड़ा जीता परंतु सिकरवार के मन परिवार में जनसेवा की एक कसक जो नगर निगम के माध्यम से ही पूरी हो सकती थी बाकी रही विधानसभा चुनाव के जीतने के बाद सिकरवार परिवार खाली नहीं बैठा अगला लक्ष्य वारियर महापुर का चुनाव जीतने के लिए जाने-माने बुनता रहा आखिर महापौर चुनाव हुआ सिरोही के चुनाव में सतीश सिकरवार की पत्नी शोभा सिकरवार महापौर निर्वाचित होकर नगर निगम में कांग्रेस का झंडा 56 साल बाद फहराया।

अब बात करते हैं कांग्रेस संगठन की प्रदेश में कमलनाथ सरकार गिरने के बाद कांग्रेस के कर्ता-धर्ता जो प्रदेश के दो तथा जिले का एक अध्यक्ष पद एक साथ तीन पद लेकर कांग्रेस के सूत्रधार बने थे के सहारे कांग्रेस चल तो जरूर रही थी परंतु गुटबाजी के कारण वह शुन्य जैसी स्थिति में आ गई सतीश सिकरवार के कांग्रेस में आमद एवं विधायक बनने के बाद कांग्रेस को वेंटिलेटर स्थिति से छुटकारा मिला सतीश सिकरवार तथा उसके परिजनों ने अंचल के कांग्रेस के सभी छोटे बड़े नेता एवं कार्यकर्ताओं को जिनको वह पहले से ही पूर्व से जानते थे उनका मान सम्मान करते हुए उनका मनोबल बनाया, राजनीतिक सूत्रों अनुसार सतीश सिकरवार परिवार का कांग्रेस के अंदर बढता कद कई नेताओं को नागवार जरूर गुजर रहा है परंतु कांग्रेस नेतृत्व सिकरवार परिवार को पाकर स्वयं गौरवान्वित महसूस करते हुए अंचल के कांग्रेस नेताओं को अंचल में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए सिकरवार परिवार को आगे रखते हुए कार्य कर रहा है इससे स्पष्ट नजर आ चुका है कि कांग्रेस के अंदर एक ऐसे क्षत्रप का उदय हुआ है जो भविष्य में चुनौतियों का सामना करते हुए कांग्रेस को धरातल स्तर पर मजबूत करेगा।

अंत में एक बात और लिखना बेहद जरूरी समझते हैं कि सिकरवार परिवार राजनीति की लीक से हटकर सभी राजनीतिक दल के नेताओं को मान सम्मान तथा इज्जत इतनी देते है जितना कोई विपक्ष का नेता भी नहीं देता शायद इसी कारण से विपक्षी नेता भी चुनाव के समय कट्टरता जैसी स्थिति में नहीं रहते।

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