December 23, 2024
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मध्य प्रदेश में जेल विभाग को जेल एवं सुधारात्मक सेवाएं नाम की पहचान दी गई है लेकिन उज्जैन जेल में जिस तरह गतिविधियां संचालित हो रही थीं, उससे लगता है कि जेल अधिकारियों ने उसे नोट छापने की मशीन की तरह अवैध व नियम विरुद्ध गतिविधियों का अड्डा बनाकर रख दिया था। जीपीएफ घोटाले की आरोपी उषाराज व उनके करीबी जगदीश परमार के पकड़े जाने के बाद जेलकर्मी में से कुछ खुलकर तो कुछ दबी जुबान में जेल में शराब-मटन-नशा से लेकर अन्य सुविधाओं के रेट के बारे में बता रहे हैं। पढ़िये इस पर केंद्रित हमारी रिपोर्ट।

उज्जैन जेल में जीपीएफ घोटाले के उजागर होने के बाद तत्कालीन जेल अधीक्षक उषाराज और जेल के भीतर चल रहे पंसदीदा जेलकर्मियों व बंदियों और बाहर के कथित पत्रकार के गठबंधन की परतें खुलना शुरू हो गई हैं। जेल में पीड़ित कर्मचारियों ने खुलकर व दबे-छिपे ढंग से इस गठबंधन से अवैध गतिविधियों के बारे में बताते हुए कहा कि जेल चक्कर सबसे महत्वपूर्ण होता है लेकिन कुछ समय से चक्कर अधिकारी के नाम के लिए तैनात होते थे। चक्कर की जिम्मा चंद बंदियों के हाथों में होता था। एक तरह ये लोग चक्कर अधिकारी बनने लिए नीलामी की बोली जैसे लगाते थे। बताते हैं कि चक्कर का जिम्मा संभालने के लिए दो से ढाई लाख रुपए तक दिया जाता था।

चक्कर जेल का महत्वपूर्ण हिस्सा
जेल के भीतर चक्कर वह खुला भाग होता है जहां से होकर बंदी-कैदी व सामान गुजरता है। हर व्यक्ति की वहां तलाशी ली जाती है। सामान की जांच-पड़ताल की जाती है। चक्कर अधिकारी का यह काम होता है लेकिन बताते हैं कि कुछ समय से जेल के कर्मचारी का नाम ड्यूटी के कागजों पर होता था लेकिन वास्तव में सबकुछ चुनिंदा सजायाफ्ता बंदी ही यह काम करते थे। इंदौर के जेडी हो या उज्जैन का मराठा या दूसरा कोई, जो भी ज्यादा पैसा देता, उसे जिम्मेदारी मिल जाती।

सेल में डालने का डर दिखाना
जेल में मुलाकात की खिड़की पर जेल अधीक्षक के कुछ करीबी को विशेष अनुमति थी जिनमें जगदीश परमार भी था। सीसीटीवी फुटेज में उसके साक्ष्यों को अब तलाशा जा रहा है। जेलकर्मी बताते हैं कि वह लगभग रोज ही मुलाकात की खिड़की पर पहुंचता था और वहां कुछ बंदियों को बुलवाकर बातचीत करता था। कहा जा रहा है कि ये वे बंदी होते थे जो आर्थिक रूप से समृद्ध होते थे। इन्हें मारने-पीटने या सेल में डालने का डर दिखाकर 40 से 50 हजार रुपए वसूले जाने के आरोप भी सामने आ रहे हैं।

हर चीज का रेट तय था
बताया जा रहा है कि उज्जैन जेल में जो जेलकर्मियों-बंदियों व बाहरी लोगों का गठबंधन था, उसमें परमार के अलावा राठौर, गिरिराज, देवेंद्र, अनिल, मंसूर, राधेश्याम, चप्पल, मराठा, जेडी जैसे लोग शामिल थे। शराब की एक बोतल 2000 रुपए, एक किलोग्राम मटन 2000 रुपए, बाहर से खाना लाने का कीमत के साथ 2000 रुपए लिए जाते थे। अच्छे व्यवहार, अच्छा बिस्तर, अच्छी सुविधा के लिए भी बंदी से पैसे वसूली होती थी।

जेलकर्मियों पर गठबंधन ने ऐसे बनाया दबाव
जेल अफसरों-कर्मचारियों-बंदियों और बाहरी लोगों के गठबंधन ने जेलकर्मियों पर उनके मुताबिक काम करने के लिए कई तरह से दबाव बनाया था। इसके कुछ उदाहरण अब जेलकर्मी बता रहे हैं। सन्नी गेहलोत पर जेल अधीक्षक ने एक्शन लिया था जिसमें गवाह जगदीश परमार बना था। शशिभूषण साहू के खिलाफ भी कार्रवाई की गई। एक महिला प्रहरी पर घर में काम करने से मना करने पर उसके साथ मारपीट की गई और मोबाइल ही तोड़ दिया गया था। एक महिला प्रहरी व एक अन्य प्रहरी की ड्यूटी में बाहर से शराब की बोतल फिंकवाकर उन्हें काम में लापरवाही बरतने का आरोपी बनाकर कार्रवाई करने के आरोप भी लगाए जा रहे हैं।

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