कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बड़ा झटका लगा है। 150 सीट जीतने का दावा करने वाली बीजेपी आधी सीट भी नहीं जीत सकी। कर्नाटक में बीजेपी महज 65 सीटों पर सिमट गई। यह हाल तब है जब पीएम नरेंद्र मोदी प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी थी।
कर्नाटक में पूरी ताकत झोंकने के बाद भी बीजेपी कर्नाटक विधानसभा का चुनाव हार गई। एक साल के अंदर हिमाचल के बाद यह दूसरा राज्य है जो बीजेपी के हाथ से फिसल गया है। कर्नाटक में बीजेपी ने अपनी प्रतिष्ठा को पूरी तरह से दांव पर लगा रखा था। अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ही बात की जाए तो उन्हें चुनाव के दौरान कनार्टक में अकेले 25 कार्यक्रम किए। इनमें से उन्होंने 19 सभाओं को संबोधित किया और 6 रोड शो किए। राज्य स्तर पर बीजेपी कुछ खास नहीं कर पाई। उसके पास इस स्तर पर बड़े चेहरे भी नहीं थे। पूरी ताकत झोंकने के बाद भी आखिरकार बीजेपी कर्नाटक का चुनाव क्यों हार गई। क्या हैं हार के फैक्टर:
बीजेपी ने कर्नाटक चुनाव में पूर्व CM बी. एस. येदियुरप्पा की जगह पर अपना चेहरा CM बसवराज बोम्मई को बनाया। लेकिन यह चेहरा कोई करिश्मा नहीं दिखा पाया। वहीं, कांग्रेस के पास डी. के. शिवकुमार और सिद्धारमैया जैसे मजबूत चेहरे थे। बीजेपी के लिए बोम्मई को चुनावी मैदान में आगे करके चुनाव लड़ना महंगा पड़ गया। पार्टी के पास राज्य स्तर पर भी कोई चेहरा नहीं था।
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एस. ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। साथ ही बीजेपी के एक विधायक को जेल जाना पड़ा। इतना ही नहीं स्टेट कॉन्ट्रैक्टर असोसिएशन ने भ्रष्टाचार के मामले में पीएम मोदी से शिकायत की। इस मुद्दे को कांग्रेस ने पूरे चुनाव में उठाया। बीजेपी के लिए यह मुद्दा गले की फांस बन गया और वह इसकी काट नहीं कर पाई।
बीजेपी नेता पिछले एक साल से हलाला, हिजाब से लेकर अजान तक के मुद्दों को उठाते रहे। चुनाव के ऐन मौके पर बजरंग बली की एंट्री हो गई, लेकिन धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिशें नाकामयाब रहीं।
चुनाव में लोगों के लिए महंगाई और बेरोजगारी बड़े मुद्दे थे, कांग्रेस इन मुद्दों को उठाती रही। चुनाव में लोगों ने इन मुद्दों को ध्यान में रखकर वोट किया। वहीं, बीजेपी चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे उठाती रही जबकि लोकल मुद्दों पर उतना ध्यान नहीं दिया। कांग्रेस ने लोकल मुद्दों पर फोकस किया। बीजेपी लोकल लेवल और राज्य लेवल पर आपसी खींचतान भी हार का कारण बनी।
कर्नाटक में बीजेपी को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाने वाले येदियुरप्पा साइड लाइन ही रहे। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम होते थे तो वे नजर आते थे, लेकिन बाद में नजर नहीं आते थे।