नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसले में कहा कि किसी कर्जदार के बैंक खाते को फ्रॉड घोषित करने से पहले उसके पक्ष को सुना जाना चाहिए। साथ ही कहा कि यदि ऐसी कार्रवाई की जाती है, तो एक तर्कपूर्ण आदेश का पालन होना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ व जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने सोमवार को तीन साल पहले तेलंगाना हाईकोर्ट के दिए एक फैसले को सही ठहराया।
पीठ ने कहा कि खातों को फ्रॉड घोषित करने से कर्जदारों के जीवन पर विपरीत असर भी होते हैं। उनके खातों को जालसाजी संबंधी दिशा-निर्देश के तहत धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने से पहले बैंक को उन्हें सुनवाई का अवसर देना चाहिए।
यह फैसला भारतीय स्टेट बैंक की एक याचिका पर आया। पीठ ने कहा कि दूसरे पक्ष को सुना जाए (ऑडी अल्टरम पार्टेम) के नियम को भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देश के प्रावधानों में पढ़ा जाना चाहिए ताकि उन्हें मनमानी से बचाया जा सके। इसके तहत कोई भी व्यक्ति बिना सुनवाई के अपराधी घोषित नहीं किया जाएगा। हर व्यक्ति को सुनवाई का अवसर मिलता है।
आरबीआई के 2016 के मास्टर सर्कुलर को ‘वाणिज्यिक बैंकों और चुनिंदा एफआईएस की ओर से धोखाधड़ी वर्गीकरण और रिपोर्टिंग’ पर विभिन्न हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी।
इसने बैंकों को बड़े कर्ज डिफॉल्टरों से सतर्क रहने को कहा था। आरबीआई ने कहा था कि बैंक ऐसे खातों को संदिग्ध पाए जाने पर फ्रॉड घोषित कर दें।
यह है मामला-
एसबीआई ने तेलंगाना हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी। तेलंगाना हाईकोर्ट ने वर्ष 2020 में राजेश अग्रवाल की याचिका पर फैसला सुनाया था कि किसी भी खाते को फ्रॉड घोषित करने से पहले खाताधारक को सुनवाई का एक मौका मिलना चाहिए।
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