सिटी टुडे। मध्यप्रदेश की सत्ता और संगठन की राजनीति में ग्वालियर चंबल संभाग की हमेशा अहम भूमिका रही है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनवाने का श्रेय भी ग्वालियर चंबल संभाग से भारी बहुमत से जीते कांग्रेस विधायकों को ही जाता है जिस कारण कमलनाथ सरकार बनी थी तथा साल 2020 आते-आते कमलनाथ सरकार गिराने में अहम भूमिका ग्वालियर चंबल संभाग के ही विधायको ने निभाई।
2018 विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रहे सीताराम आदिवासी ने उस समय कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व मंत्री रामनिवास रावत को धूल चटा कर जीत हासिल की थी परंतु 2023 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सीताराम आदिवासी की जगह बाबूलाल मेवरा को मैदान में उतारा था और कांग्रेस रामनिवास रावत ने जीत प्राप्त को थी। निर्दलीय प्रत्याशी मुकेश मल्होत्रा भी 44128 वोट आदिवासी समाज के लेने के बाद तीसरे नम्बर पर रहे थे।
रामनिवास रावत ने जीत हासिल कर कई अफवाहें को विराम देते हुए कई बार कहा कि मैं सच्चा निष्ठावान कांग्रेसी हूं कभी दल बदल नहीं करूंगा कांग्रेस में ही रहकर संघर्ष करूंगा परंतु लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की रणनीति के तहत अचानक कांग्रेस को अलविदा कहकर भाजपा में शामिल होकर श्योपुर जिले से भाजपा के सांसद प्रत्याशी को जितवाने का दावा किया और विजयपुर विधानसभा क्षेत्र से 35000 से अधिक मतों से सांसद प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी। जबकि यह जीत मुख्यमंत्री डॉक्टर यादव की निजी रणनीति ही थी इसमें जिले के सभी भाजपा के नेता करो या मरो की स्थिति में एकजुट होकर सांसद प्रत्याशी शिव मंगल सिंह तोमर को जितवाने के लिए कमर कस चुके थे।
अब रामनिवास रावत कांग्रेस विधायक पद से इस्तीफा देकर तत्काल मोहन सरकार में वन पर्यावरण मंत्री बन गए, मंत्री बनते ही रामनिवास रावत ने उपचुनाव जीतने के लिए स्थानीय सभी नेताओं से तालमेल करने के प्रयास किये, मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव रावत के मंत्री बनने से लेकर समाचार लिखे जाने तक विजयपुर विधानसभा क्षेत्र के में तीन बार दौरा करने के साथ ही जिले को विशेष कर विधानसभा क्षेत्र विजयपुर को विकास कार्यों की कई सौगाते देकर स्थानीय भाजपा नेताओं तथा आदिवासी समाज को संगठित करने में सफलता तो अर्जित की है परंतु क्या उप चुनाव में रावत संगठन के अंदर उपजा विद्रोह समाप्त कर सकेंगे राजनीतिक समीक्षकों के मुताबिक भाजपा के नेताओं में कितना भी मनभेद मतभेद हो परंतु चुनाव के दौरान मतदान के पूर्व यह सब एकजुट हो जाते हैं अगर ऐसा हुआ तो रावत की जीत सुनिश्चित है।
कांग्रेस भी किसी भी तरह किसी भी हालत में हर कीमत पर दल बदलू रामनिवास रावत को चुनाव हरवाने के लिए रणनीति बना रही है जबकि अधिकतर जिले के कांग्रेस नेता अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा के शीर्ष नेताओं के अलावा रामनिवास रावत से जुड़े हैं, दुर्भाग्य ही है कि कांग्रेस के पास अपना कोई मूल प्रत्याशी ही नहीं है। ऐसे में कांग्रेस सीताराम आदिवासी तथा मुकेश मल्होत्रा पर डोरे डाल रही है कि संभवत: कांग्रेस प्रत्याशी इन दोनों में से ही होगा। ऐसी स्थिति में अगर जातीय समीकरण देखे जाएं तो आदिवासी समाज मजबूत बताया जाता है परंतु सीताराम आदिवासी से स्थानीय किसान इसलिए भी नाराज है कि भाजपा विधायक होने के बाद भी कांग्रेस के मुख्यमंत्री कमलनाथ के कार्यकाल में उन्होंने कांग्रेस शासनकाल में सत्ता के सहारे कई हजारों किसानों को उजाड़ दिया था उनके जख्म अभी भी है नहीं भरे हैं ऐसी स्थिति में 30,000 से अधिक किसान मतदाता इस उपचुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे क्योंकि जिले में आंशिक रूप से किसान आंदोलन का भी रहा है। रावत मतदाता मात्र 15000 है तथा अन्य पिछड़ा वर्ग 25000 से अधिक मतदाता है भाजपा को इन किसान तथा पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं के प्रति काफी विश्वास होने के साथ अन्य सामान्य जातिवर्ग मतदताओं पर भी मजबूत विश्वास हैं। उल्लेखनीय है कि श्योपुर जिला RSS की प्रयोगशाला रही है तथा प्रदेश संगठन मंत्री श्री हितानंद शर्मा की प्रमुख कार्यस्थली होने का कारण उनकी भी जिले में उतनी ही पकड़ है जितनी केंद्रीयमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा नरेंद्र सिंह तोमर विधानसभा अध्यक्ष की मजबूत पकड़ है।
राजनीतिक समीक्षकों के मुताबिक मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने अगर सभी नेताओं को जिम्मेदारी सौंप कर विद्रोह को शांत कराने में सफलता अर्जित की तो ग्वालियर चंबल संभाग में यहां रिकॉर्ड तोड़ मतों से जीत हो सकती है।