एक दशक से निजी हाथों में है रेसीडेंसी कोठी का प्रबंधन, कर्मचारियों को देने के वेतन के पैसे नहीं और निजी कंपनी को दे रहे हर साल करोड़ों
*इंदौर, * शुक्रवार को नगर निगम महापौर परिषद की बैठक में कई फैसले लिए गए उनमें एक फैसला ऐतिहासिक रेसीडेंसी कोठी के नाम परिवर्तित का भी था। नगर की सरकार का निर्णय है कि 206 साल पुरानी हेरिटेज इमारत का नाम शिवाजी कोठी किया जाएगा और परिषद ने सर्वसम्मति से इस पर मुहर भी लगा दी। पर क्या आपको पता है कि बीते एक दशक से रेसीडेंसी का प्रबंधन निजी हाथों में है। सरकार ने प्रदेश भर के सर्किट हॉउस और डाक बंगलों के रख रखाव के लिए निजी कंपनी को प्रबंधन सौपने का फैसला किया और प्रायोगिक तौर पर इंदौर की रेसीडेंसी कोठी के प्रबंधन, हाउस कीपिंग आदि का काम निजी कंपनी को सौप दिया। तर्क था कि इससे रख रखाव बेहतर होगा और सरकार को कर्मचारियों के वेतन भत्ते आदि से भी राहत मिलेगी। दस सालों में सरकार को कितनी राहत मिली यह तो नहीं पता पर निजी कंपनी को सालाना करोड़ों देने का भार सरकार पर जरूर आ गया है। बहरहाल निगम परिषद ने कोठी से जुड़ी अंग्रेजी शासन की यादे यानी गुलामी के निशानों को मिटाने की कोशिश इस नामकरण के जरिए की है। पर चर्चा रेसीडेंसी की ऐतिहासिकता, मौजूदा व्यवस्था और पुरानी यादों की भी होना लाजमी है।
दो कंपनियां बदल चुकी
गौरवशाली इतिहास और होलकर राजा-महाराजाओं व अंग्रेजों के शासन की गवाह रेसीडेंसी कोठी को दस साल पहले पीडब्ल्यूडी (लोक निर्माण विभाग) ने मेंटेनेंस, हाउस कीपिंग सहित सभी कार्यों के लिए इसे चार करोड़ 90 लाख रुपए में रतन इंटरप्राइजेस कंपनी को सौंप दिया। प्रदेश में पीडब्ल्यूडी के किसी सर्किट हाउस को निजी हाथों में सौंपने का यह पहला प्रयोग है। एक बार इसी कंपनी की मियाद बढ़ा दी गई और अब तीसरी कंपनी के हाथ में और दस सालों में मेंटेनेंस का राशि भी लगभग दो गुना हो चुकी है। जबकि इसके पच्चीस प्रतिशत खर्च पर पीडब्ल्यूडी और स्थानीय प्रशासन के अधिकारी कर्मचारी रेसीडेंसी को संभाल ही रहे थे।
रेजिडेंट करते थे मॉनिटरिंग
इतिहासकारों के मुताबिक गेराल्ड वेलस्ली इंदौर के पहले रेजिडेंट थे और वे जून 1818 से लेकर नवंबर 1831 तक रेजीडेंट रहे। रेसीडेंसी कोठी में ही उनका ऑफिस था। रेजिडेंट होलकर महाराजाओं के डिप्लोमेट और एडवाइजर का रोल अदा करते थे। होलकर स्टेट की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एक्टिविटी की मॉनिटरिंग भी किया करते थे।
इतिहास का खूबसूरत पन्ना है रेसीडेंसी
रेसीडेंसी या रेसीडेंसी कोठी इंदौर के इतिहास का एक खूबसूरत पन्ना है। यह होलकर राजाओं के सत्ता संचालन और अंग्रेजी हुकूमत गुलामी के निशान, आजादी के बाद देश के शीर्ष नेताओं की लगातार आमद की अनेक कहानियों की साक्षी है। रेसीडेंसी कोठी बेहतर वास्तुकला का बेहतर नमूना ह। कलात्मकता के साथ रेसीडेंसी इंदौर के विकास इंदौर के लिए बनाए जाने वाले प्लान सेंटर भी था। रेसीडेंसी के बरामदे, स्तंभ, खूबसूरत खिड़कियां और इंटीरियर बहुत ही दर्शनिय है। रेजीडेंसी के पास से ही खान नदी बहती थी जो इसकी सुंदरता में चार चांद लगाती थी। खान नदी को रेसीडेंसी रिवर भी कहा जाता था। इसी पर वालेस्ली ब्रिज बनाया गया था, जिसे आज नवलखा पुल कहते हैं। इस पुल को गेराल्ड वालेस्ली ने 1823 को बनाया था और इसके लिए सरदार बोलिया ने दस हजार का दान दिया था। यहां बोटिंग क्लब बनाया गया और बाकायदा अंग्रेज बोटिंग किया करते थे।
क्रांति का गौरवशाली इतिहास भी है जुड़ा
महू के इतिहासकार प्रेमी देव कुमार वासुदेवन द्वारा लिखित पुस्तक में दर्ज है कि 1 जुलाई, 1857 महाराजा द्वारा रेसीडेंसी की सुरक्षा के लिए प्रदान की गई तोपों से हमला किया गया। इंदौर में अंग्रेजों के खिलाफ यह विद्रोह शहीद सआदत खान ने किया था। पुस्तक के अनुसार रेसीडेंसी पर पहली गोली होल्कर सैनिक सआदत खान ने चलाई थी। उसी दिन अंग्रेज रेजीडेंसी से भागने में सफल रहे। कई क्रांतिकारी पकड़े गए मगर सआदत खान पकड़ाए। 17 साल बाद 1874 में अंग्रेजों ने उसे पकड़ लिया और इंदौर इंदौर लाकर फांसी पर लटका दिया। जिस बरगद के पेड़ से उसे फांसी दी गई थी, वह आज भी रेसीडेंसी के परिसर में खड़ा है और उस स्थान पर एक छोटा सा स्मारक बनाया गया है।
शेफ पिंटों साहब भी है रेसीडेंसी की यादों में
इंदौर की रेसीडेंसी कोठी लगभग सभी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री तथा विशिष्ट जनों की पसंदीदा रही है। इस कोठी से तात्कालिन मुख्य शेफ आरजे पिंटों साहब की भी यादे जुड़ी है। उनके हाथ के स्वाद के तलबगारों में पं जवाहरलाल नेहरू, डॉ राजेंद्र प्रसाद, फखरुद्दीन अली अहमद, इंदिरा गांधी, अटल जी, राजीव गांधी, श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल, अर्जुन सिंह कई दिग्गज नेताओं के नाम शुमार है।