
सिटी टुडे। कहते है एक मां का दर्द क्या होता है एक मां ही समझ सकती है। सर्दी हो या गर्मी बच्चों को स्कूल टाईम पर भेजने के लिए मां हर परिस्थितियों में यह कर्तव्य निभाती है। चूंकि Gwalior कलेक्टर स्वयं एक मां है शायद इसीलिए वह एक मां ही नहीं बल्कि अभिभावकों के दर्द की गंभीरता को समझती है इसी के मद्देनजर सर्दी आने से पहले मौसमी वायरल बुखार जिले में पैर पसारे और सॉफ्ट टारगेट बच्चों को संक्रमण की चपेट में ले उसके पहले ही मैडम कलेक्टर साहिबा ने स्कूलों को टाइमिंग में परिवर्तन तो किया ही था साथ ही कक्षा आठ तक के बच्चों को वायरल संक्रमण से बचाने के लिए आकस्मिक अवकाश भी घोषित किए थे।
मामला चाहे प्राईवेट स्कूलों द्वारा प्रत्येक वर्ष फीस वृद्धि करने की अंधेरगर्दी का हो अथवा कमीशनखोरी के चलते तयशुदा दुकानों से प्राईवेट पब्लिशर्स की ही किताबें और बदली हुई यूनिफार्म खरीदने के फरमान का हो Gwalior कलेक्टर श्रीमती रुचिका चौहान ने प्राइवेट स्कूलों की नियंत्रण से बाहर होती जा रही लगाम कसने का काम किया है हालांकि चतुर स्कूल संचालक इसकी काट भी बखूबी क्लास टीचर और स्टाफ के माध्यम से निकालकर बच्चों और उनके अभिभावकों को पेरेंट टीचर मीटिंग में रिजल्ट प्रोवाइड कराने के बहाने बुलाकर एक पर्ची देकर या दुकानदार का विजिटिंग कार्ड देकर कह देते है कि किताबें फलां दुकान से लेनी है और यूनिफार्म फलां दुकान से ही लेनी है। मजबूरी में अभिभावक जानते और समझते हुए भी स्कूलों द्वारा तयशुदा दुकानों पर अपनी मेहनत की कमाई लेकर हलाल होने निर्दय कसाई जैसे इन ठग दुकानदारों की दुकानों पर चलकर खुद पहुंचते है। यही नहीं सालभर की कमाई एकसाथ बटोरने में लगे ये कमीशन का खेल खेलकर फर्श से अर्श पर पहुंचे ठग मजबूर अभिभावकों से बहुत ही बेहूदगी से व्यवहार करने से भी कतई भी कतराते नहीं है ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें भलीभांति ज्ञात है कि बच्चों को स्कूल में पढ़वाना है तो ग्राहक एन केन प्रकरेन झक मारके उनसे ही खरीदने को मजबूर है, जिसका ये फायदा उठाते हुए अभिभावकों से बेहूदगी के साथ साथ जमकर ठगी भी करते है। ओल्ड हाईकोर्ट, दर्पण कालोनी, फालका बाजार, यूनिवर्सिटी रोड यहां से संचालित होता है इन कथित माफियाओं का साम्राज्य, जो जिले के प्रत्येक प्राइवेट स्कूलों में मोटा कमीशन देकर अभिभावकों की मजबूरी का फायदा उठाकर उनकी जेब पर डकैती डालते है।
एक सिंगल मदर अभिभाविका रुचि जैन ने बताया कि उनकी पुत्री शिवपुरी लिंक रोड स्थित दून स्कूल में अध्यनरत है (उल्लेखनीय है कि कपड़ा दुकान मालिक द्वारा स्कूल नहीं बल्कि दुकान की तरह ही यह स्कूल संचालित किया जाता है) वर्तमान में जारी शैक्षणिक सत्र के दौरान बीती गर्मियों में तो बच्चे खराब पंखों के नीचे बेहाल होकर पढ़ने को मजबूर रहे इस विषय में जब स्कूल प्रिंसिपल व प्रबंधन से बात की गई तो उन्होंने दबे शब्दों में स्कूल संचालक की अनदेखी को स्वीकार किया इससे स्पष्ट है कि कपड़ा दुकान का मालिक स्कूल को भी कपड़ा दुकान की तरह मात्र कमाई का ही जरिया मान चुका है यही नहीं एक अन्य निशांत शर्मा नामक व्यक्ति ने बताया कि उनकी नन्हीं बेटी कक्षा एक में पड़ती है जिसकी फरवरी महीने तक की फीस आलरेडी जमा है परंतु वार्षिक परीक्षा जो कि मार्च में अभी शुरू होकर जारी है फिर भी 24 फरवरी से ही लगातार मेसेज और फोन किए जाकर मार्च की फीस भी जबरन वसूलने के लिए परीक्षा में बैठने से रोकने और फीस के बाद ही उत्तर पुस्तिका देने का दबाव बनाया जा रहा है जबकि मार्च समाप्त नहीं हुआ अभी चालू है, अब आप ही देखें ये स्कूल है या दुकानदार की कपड़े की दुकान, ख़बर तो ये भी है कि जिस बिल्डिंग में दुकानदार इस स्कूल को संचालित करवा रहा है वह बिल्डिंग भी स्वामित्व की न होकर रेंटल है जो कि स्कूल संचालन की गाइडलाइंस के अनुसार निर्धारित मानकों और स्कूली बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आवश्यकताओ की पूर्ति भी नहीं करती है।
हालांकि बात सिर्फ एक स्कूल की ही नहीं है लगभग हर बड़े स्कूल में शिक्षा के मंदिर को दुकान समझकर ही मालिक के दबाव में प्रबंधन द्वारा संचालित किया जा रहा है। बच्चों को अच्छे से अच्छे स्कूल में पढ़ाने का ख्याल मन में रखने वाले अभिभावकों को अभी रिजल्ट आते ही शहर भर में बड़े बड़े होर्डिंग, मीडिया, सोशल मीडिया के माध्यम से विज्ञापनों के द्वारा आकर्षण में लेने का धंधा शुरू होने वाला है और फिर अभिभावकों को लागलपेट में लेकर बच्चे का एक बार एडमिशन हो गया फिर तुम कौन और हम कौन? अब यहां से शुरू होता हैं फीस में गड़बड़ झाले का खेल ट्यूशन फीस के अलावा जबरन की एक्टिविटी फीस भले हर माह स्कूल में कक्षा के छात्रों के लिए एक्टिविटी हो भी नहीं तब भी यह फीस वसूली जाती है एवं हर माह के हिसाब से एक्जाम फीस सालाना फीस स्ट्रक्चर में सम्मिलित की जाकर जबरन ली जाती है। शासकीय सेवा में कार्यरत सहायक वर्ग तीन श्रीमती अनीता शाक्य अपने पुत्र का एडमिशन RTE (शिक्षा के अधिकार) के तहत इन्हीं में से एक बड़े स्कूल में कराने के लिए प्रयासरत रही है उनके द्वारा बताया गया कि इन प्राइवेट स्कूलों में शासन की इस योजना तहत भी एडमिशन सिर्फ स्कूली स्टाफ और उनके परिजनों के बच्चों को दिया जा रहा है जबकि अन्यत्र अभिभावक को किसी न किसी कागज की कमी बताकर अथवा अन्यत्र क्षेत्र में निवासरत होने की बात कहकर टालमटोल कर चलता कर दिया जाता है।
खैर, Gwalior जिले की मैडम कलेक्टर ने अभिभावकों के दर्द को गंभीरता से समझते हुए सख्त निर्देश जारी कर दिए है लेकिन देखने वाली बात है कि क्या ढीठ स्कूल संचालको पर सख्ताई का असर होगा या रहेंगे बे असर।
22 मार्च से 29 मार्च तक लगेगा पुस्तक मेला:
स्कूली बच्चों को सस्ते दाम में उपलब्ध होंगी किताबें,यूनिफार्म व स्टेशनरी। कोई भी निजी स्कूल पुस्तक मेला से पहले छात्रों को किताबें ख़रीदकर लाने के लिए नहीं करेगा बाध्य, कलेक्टर ने सभी प्राइवेट स्कूलों को पाठ्यक्रम की पुस्तकों की जानकारी प्रदर्शित करने का दिया निर्देश ।