सिटी टुडे। मध्यप्रदेश में 2008 तक आदिवासी वोटबैंक स्थाई रूप से कांग्रेस का माना जाता रहा। आदिवासी वर्ग के प्रदेश स्तर के नेताओं तथा विधायकों की संख्या भी अधिक थी परंतु ऐसी क्या परिस्थितियां बनी कि कांग्रेस को स्वयं की जागीर मानकर प्रदेश स्तर पर विभिन्न जातियों के समीकरणों को समाप्त कर दिया गया अर्थात विभिन्न जातियों के नेतृत्व को शून्य कर दिया गया. मध्यप्रदेश में विंध्य तथा मालवा निमाड़ क्षेत्र आदिवासी बहुल्य है परंतु इन क्षेत्रों में एक षड्यंत्र के तहत आदिवासी नेतृत्व को केवल इसलिए समाप्त किया जा रहा है ताकि एक युवराज को मुख्यमंत्री बनाया जा सके आदिवासी नेता बिसाहू लाल सिंह को इतना प्रताड़ित किया कि वह कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में आ गए. इसी प्रकार सुलोचना रावत ने भी अपने सुनहरे भविष्य को भापकर कांग्रेस छोड़ भारतीय जनता पार्टी में प्रवेश पाया और विधायक निर्वाचित हो गई. ओमप्रकाश मरकाम, बाला बच्चन, उमंग सिंगार आज भी जो आदिवासी नेता है परंतु उनको भी हाशिए पर लाने का एक षड्यंत्र कुछ हद तक तो सफल हो गया जिसका असर 2018 के विधानसभा चुनावों में स्पष्ट दिख गया कि भारतीय जनता पार्टी के आदिवासी विधायकों की संख्या बढी है तथा अभी भी कांग्रेस से अधिक भारतीय जनता पार्टी आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय है. ओम प्रकाश मरकाम, बाला बच्चन, उमंग सिंगार आज भी कांग्रेस का विधायक तो है परंतु कांग्रेस नेतृत्व ने आज भी उनसे दूरी बना रखी है कांग्रेस नेतृत्व मध्यप्रदेश में केवल कांतिलाल भूरिया को ही आदिवासी नेता मान्य करता है शायद इसीलिए राजनीतिक विरासत मैं उनके पुत्र को मध्य प्रदेश युवक कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर युवराज के कदमताल के साथ रखने की योजना है. क्या यह सब कांग्रेस को मजबूत करने की बजाय स्वार्थो तथा अपनो की खातिर आदिवासी नेतृत्व को कुचलने का षड्यंत्र नहीं है जिससे भविष्य मे मध्य प्रदेश की कांग्रेस की राजनीति के अंदर आदिवासी नेतृत्व खत्म होकर मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी आदिवासी नेतृत्व के साथ मजबूत हो जाए.
आखिरकार कांग्रेस नेतृत्व का तीसरा नेत्र कब खुलेगा? नेतृत्व की कैसी क्या मजबूरियां है सब कुछ हालत से वाकिफ होने के बाद भी कांग्रेस नेतृत्व ने मध्य प्रदेश की कांग्रेस राजनीति को गिरवी रखा हुआ है.